अब से लिखना बंद करूंगा…!
अब से लिखना बंद करूंगा…!
लफ़्ज में दिखना बंद करूंगा…!!
तुमने खरीदे लफ़्ज मेरे,
हो गए सारे जज्ब़ मेरे,
अब खरीदना सूखे पत्ते,
तुम पर बिकना बंद करूंगा…!
अब से लिखना बंद करूंगा…!!
पत्र हमारे राख कर दिए,
गर्व-गुमां सब ख़ाक कर दिए,
शर्म-हया सब ताक पे रख के,
अबसे झिझकना बंद करूंगा…!
अब से लिखना बंद करूंगा…!!
मैं ‘प्रजापति’ कलम तोड़ कर,
स्याही डिबिया सभी छोड़कर,
दिल से मिटा अस्तित्व हमारा,
लब़ पे फड़कना बंद करूंगा…!
अब से लिखना बंद करूंगा…!!
लिखना बंद मत कीजिये, और बेहतर लिखने की कोशिश कीजिये.
अवश्य बड़े भाई साहब…! मन के उद्गार थे जो प्रस्फुटित हो गए….