लघुकथा

कहानी : बच्चों की खातिर

शापिग कामप्लेक्स में घुसते ही जोरदार स्लूट मारकर जिस गेटकीपर ने दरवाजा खोला,उसे देखते ही मैं अवाक रह गई।अचानक मुँह से निकल पड़ा “अरे! श्यामलाल यहाँ कैसे ?.. कैसे हो?” उसके जवाब देने से पहले ही मैं फिर बोल उठी “ रिटार्ड हो गए क्या? वह झेपता हुआ सा हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। श्याम लाल हमारे स्कूल में एक क्लास फोर कर्मचारी था। अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आराम की जिन्दगी बसर कर रहा था।

अचानक कुछ समय बाद पता चला कि उसकी पत्नी को कैंसर होगया। हँसमुख श्याम लाल अब उदास रहने लगा। बहुत इलाज करवाया पर कोई फायदा नहीं,बीमारी अंतिम चरण पर थी।एक दिन पता चला कि उसकी पत्नी चल बसी।
पत्नी के इलाज में बेचारे श्याम लाल पर काफी कर्ज होगया था।उसने हिम्मत नही छोड़ी दिन रात और भी अधिक मेहनत करने लगा। हम लोग अकसर उससे कहा करते -“अरे श्याम लाल कभी तो आराम कर लिया करो “ जवाब में वह यही कहता -“साब ! बेटा पढ़ लिख कर अपने पैरों में खड़ा होजाए ,बेटी अपने घर चली जाए, बस तभी आराम करूँगा।

इस बीच मेरा दूसरे शहर में तबादला होगया था और बारह साल बाद आज अचानक मुलाकात हो गई। गहरे स्लेटी रंग की वर्दी पहने ठकठकाते काले बूट और रंगे हुए काले बाल। उसका ये नया रुप देख कर मैं दंग रह गई थी।

उसकी चुप्पी देख कर मैंने फिर प्रश्न दाग दिया- बच्चे कैसे हैं ? बिटिया की शादी होगई?” अचानक मैंने देखा उसकी आँखे डबड़बा आई।मैं हैरान थी इसे क्या होगया। मैने धीरज देते हुए उससे फिर पूछा-“अरे क्या हुआ? क्या बात है ? बताओ तो ?” मेरे इतने सारे प्रश्न पूछने के बाद उसने अपनी आँखें पोछी और धीरे से कहने लगा -“साब! क्या बताऊँ बेटा पढ़ाई पूरी न कर पाया ,गलत संगती में पड़ गया था । उसे शराब और जुए की लत लग गई, आए दिन पुलिस पकड़ कर लेजाती है और मारती पीटती है छुड़वाने के लिए बार -बार उन्हें पैसे देना पड़ता है। बाप हूँ न कैसे देख सकता हूँ।“

“और बेटी..? उसकी शादी होगई ?” मैने फिर पूछा। आँखें पोछते हुए कहने लगा उसकी तो बड़े धूम-धाम से शादी कर दी थी दामाद भी अच्छा मिल गया था ,पर भाग्य देखो! एक बस दुर्घटना में उसकी मौत होगई और घर वालों ने उसे अपशगुनी कहकर घर से निकाल दिया, उसकी छह महिने की बच्ची भी है अब वह मेरे पास ही रहती है। सोचा था रिटार्ड्मेंट के बाद आराम करूँगा ,पर क्या करूँ ? इन बच्चों के खातिर नौकरी करने के लिए निकल पड़ा। बूढे को कौन नौकरी देता है साब ! इसी लिए बालों को रंग कर जवान होने का ढ़ोंग करता हूँ।बच्चों के लिए क्या-क्या करना पड़ता है ?“

कहते -कहते वह दौड़ कर फिर किसी दूसरे कस्टमर के लिए दरवाजा खोलने और स्लूट बजाने के लिए चल पड़ा और मै देर तक उसे देखती ही रही।

कनेरी महेश्वरी

जन्म तिथि_ २६ नवम्बर १९४७ जन्म स्थल_ देहरा दून उत्तराखण्ड शिक्षा_ स्नातक माता_ स्वर्गीय श्री कुशाल सिंह रजवार माता_ स्वर्गीय श्रीमती रुकमणी देवी व्यवसाय _ केन्द्रीय विद्यालय से मुख्य अध्यापिका के रुप्में सेवा निवृत काव्य संग्रह_’आओ मिल कर गाए गीत अनेक’ (बाल गीत संग्रह) “सरस अनुभूति” - साझा काव्य संग्रह_ टुटते सितारो की उड़ान, प्रतिभाओं की कमी नहीं अन्य कृतियाँ_ (ओडियो कैसेट) “गीत नाटिका” संग्रह बच्चों के लिए, “मूर्तिकार सम्मान _ १.प्रोत्साहन पुरस्कार द्वारा, केन्द्रीय विधालय संगठन १९९४ २ - राष्ट्र्पति पुरस्कार,२००० ब्लांग_ मुख्य ब्लांग “अभिव्यंजना बच्चों के लिए ब्लाग “बाल मन की राहें ब्लाग पता http://kaneriabhivainjana.blogspot.in ई-मेल [email protected] पता ७९/१ नैशविल्ला रोड़ देहरा दून उत्तराखंड़ पिन कोड़ न. २४८००१ फोन _ 9897065543

2 thoughts on “कहानी : बच्चों की खातिर

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कहानी! बच्चों के लिए माता पिता को सब करना और झेलना पड़ता है. बच्चे उसकी तुलना में १०% भी नहीं करते.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कहानी पड़ कर आँखें नम हो गई . इसी लिए तो कहते हैं गृहस्थ जीवन सब से ऊपर है . संत महात्मा बन कर उपदेश देना बहुत आसान है लेकिन जो मुसीबतें एक गृहस्थी भोगता है वोह और कोई नहीं .

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