ठूँठ
ठूँठ पेड़ सा जीवन
न पत्तिया न फल
न पुष्प न सुगन्ध
न पंथी को छाया
सिर्फ काम आता हूँ
आवारा पंक्षी के
ठौर घोड़ले के
आते है रात गुजारने
बनाते है बिगाड़ते है
घोशले आशियाना
कूदते फादते है
मेरे रुगण शाखों पर
और हम बिछाये
पलक पावणे
उन बेगाने देश के
पंक्षियो का इन्तेजार
करते है मौन से …..।
— धर्म पाण्डेय
बढ़िया कविता !