संस्मरण

मेरी कहानी – 25

आज़ादी के बाद चोर डाकू भी बहुत हो गए थे। नई नई आज़ादी मिली थी, कानून वयवस्था इतनी अच्छी नहीं थी। हमारे गाँव में ही बड़े बड़े बदमाश थे जिन से सभी लोग डरते थे। हर गली में रात को दो पैहरेदार पैहरा दिया करते थे। गली के हर आदमी को इस में भाग लेना पड़ता था. जो नहीं आ सकता था उस को दो रूपए देने होते थे और उस की जगह दो रूपए ले कर कोई और आदमी चले जाता था। दो आदमिओं के हाथ में बड़ी बड़ी लाठीआं होती थीं और वोह गली के एक सिरे से शुरू हो कर दूसरे सिरे तक जाते थे और साथ साथ लाठीआं भी जमींन पर मारते जाते थे जिस से खटाक होता रहता था। ऐक आदमी ऊंची आवाज़ में बोलता, ” जाग बई ओ ! खबरदा अ अ अ र “. कुछ कुछ मिनटों बाद ऐसे ही बोलते जाते। बहुत दफा गर्मिओं के दिनों में किसी को आवाज़ दे देते और कहते,” कैसे बई मोहन लाल, जागता है ?”. वोह भी जवाब दे देता, सोहन सिंघा आज तो बई मच्छर बहुत है और गर्मी ने भी कहर किया हुआ है। ऐसे ही कुछ लोग जागते रहते और बातें भी करते रहते। इस का फायदा यह होता था कि कहीं चोर आ गए तो लोग जल्दी ही उठ जाते थे। हर एक की चारपाई के नीचे तलवार या लाठी रखी होती थी। कुछ साल बाद मैं भी पैहरा दिया करता था। मेरे साथ एक आदमी होता था जो खुद तो बोलता नहीं था, सारी रात मुझे ही बोलना पड़ता था लेकिन वोह लोगों से बातें करता रहता था जो मैं नहीं कर सकता था।

हमारे गाँव की जितनी भी गलिआं हैं वोह गाँव की दुसरी ओर नहीं जातीं बल्कि आखिर में आ कर बंद हो जाती हैं और आगे जाया नहीं जा सकता। एक दफा कोई चोर आ गिया और किसी के घर में घुस कर ताला तोड़ने लगा। घर वालों को जाग आ गई और शोर मचा दिया, चोर !चोर ! चोर !. जिस किसी के भी हाथ में कुछ आया घर से बाहिर आ गए। वोह जा रहा है, वोह जा रहा है की आवाज़ें आने लगीं और चोर के पीछे भागने लगे। चोर कोई किसी और गाँव का था और हमारा गाँव उस के लिए अंजाना था। गली की दुसरी ओर भागने लगा जो आखिर में बंद हो जाती थी। बस फिर किया था उस को पकड़ लिया गिया और उस की पिटाई होने लगी। वोह हाथ जोड़ रहा था कि उसे छोड़ दें लेकिन सभी गुस्से में लाठिओं से पीट रहे थे। उस के खून बह रहा था और फिर कुछ बज़ुर्गों ने उसे छुड़वाया। किसी ने पुलिस को नहीं बताया और उसे छोड़ दिया। पुलिस स्टेशन फगवाड़ा था और इतनी दूर जा कर उन दिनों रिपोर्ट करना आसान नहीं था।

जब वोह चोर चला गिया तो सभी हंस रहे थे कि अब तो ज़िंदगी भर याद रखेगा। हमारे गाँव में ही इतने डाकू हो गए थे कि उन की आपिस में ही दुश्मनी बहुत होती थी। मैं सभी के बारे में फ़र्ज़ी नामों से ही बात करूँगा। हमारी बरादरी में ही मर्दान सिंह हुआ करता था जो हर वक्त अपने पास राइफल रखता था। उस के बारे में मशहूर था कि उस ने खाटी गाँव जो हमारे गाँव से तकरीबन चार किलोमीटर पूर्व की ओर है में बहुत मुसलमानों को मारा था और लूट मार की थी। वोह हमेशा अपने साथ एक आदमी रखता था जिस के पास तलवार होती थी। मर्दान सिंह का रंग गोरा और बहुत तगड़ा था। कई दफा हमारे घर भी आया और हमेशा उस के पास राइफल होती थी। अक्सर मैं अपने दोस्त तरसेम के घर जाता रहता था जिस की माँ अंधी थी लेकिन वोह मुझे बहुत पियार करती थी, और मैं उन के घर जा कर बहुत खुश होता था।

एक दिन मैं और तरसेम उन के चुबारे में खेल रहे थे कि बाहिर ऊंची ऊंची रोने की आवाज़ आने लगी और सुना कोई गालिआं दे रहा था। हम नीचे आ गए। देखा कि एक आदमी किसी को वालों से पकडे हुए था और मर्दान सिंह हॉकी से उस को पीट रहा था। मैंने देखा मर्दान सिंह अपने सगे भाई को पीट रहा था. कुछ देर बाद उस के भाई की पत्नी घर से बाहिर आ गई और अपने पति को छुड़वाने लगी लेकिन मर्दान सिंह उस को भी हॉकी से पीटने लगा। कुछ आदमी मर्दान सिंह के भाई के घर में से सामान बाहर निकाल निकाल कर पास की एक खूही के नज़दीक फैंक रहे थे। मुझ से यह देख नहीं हुआ और अपने कुएं की ओर चला गिया। कुछ घंटे बाद वोह पति पत्नी रोते हुए फगवारे की ओर जा रहे थे।

एक दिन जब फिर मैं तरसेम के घर आया तो कुछ देर बाद फिर शोर सुना। मैं तो उस दिन का डरा हुआ था लेकिन जब शोर कम हुआ तो हम दोनों गली के बाहर आ गए। जो हम ने देखा बहुत खौफनाक था। एक आदमी की लाश पड़ी थी, उस का शरीर जगह जगह से काटा हुआ था, दीवार खून से भरी हुई थी, उस के पास एक साबुन की टिक्की पड़ी थी, एक बड़ी कैंची और एक पटसन की गठरी। लोगों के मुंह से जो सुना अभी तक भूला नहीं। लोग बोल रहे थे कि जिन लोगों की इस से दुश्मनी थी वोह अवसर की तलाश में थे और आज इसे मार दिया। मैं ज़्यादा देर खड़ा नहीं हो सका और घर आ गिया। जब भी कभी मैं इस गली में आता तो दीवार पर पड़े खून के छींटे उस लाश की याद दिला देते। इस मारे गए आदमी के दो भाई और थे जो मारे गए भाई की तरह बहुत तगड़े थे। इन दो भाईओं ने जो किया वोह भी बहुत बुरा था।

एक दिन मैं स्कूल से जब आया तो लड़कों के साथ खेलने लगा। कुछ देर बाद सभी लड़के चले गए लेकिन मेरे पेट में अचानक दर्द होने लगा जो बढ़ता ही गिया। दर्द इतना बड़ गिया कि मैं बहादर की हवेली के बाहर जमींन पर लेटने लगा। मैं अकेला तड़फ रहा था कि एक आदमी सुबेग सिंह (फ़र्ज़ी नाम) आया और मेरे पेट को देखने लगा। दर्द बढ़ता ही जा रहा था। सुबेग सिंह ने मुझे अपनी बाहों में उठाया और सीधे सोहन लाल डाक्टर की सर्जरी ले गिया। डाक्टर ने मुझे एक गोली दी जिसे खाते ही मेरी दर्द कम हो गई। फिर उस ने कुछ और दुआई मुझे दी और मैं घर ले आया। यह शख्स मुझे कभी नहीं भूला लेकिन किया मालूम था कि इस शख्स की यह मिलनी आख़री थी क्योंकि इस के बाद इस के साथ जो वोह बदमाश भाईओं ने किया वोह इतना घिरनत था कि सुबेग सिंह की फैमिली को बर्बाद करके रख दिया।

सुबेग सिंह की काफी जमीन हमारे गाँव में थी, (यह कहानी लोगों से सुनी). सुबेग सिंह ने यह ज़मीन इन दो भाईओं को पांच सौ रूपए साल के ठेके पर दे रखी थी। कई साल हो गए थे लेकिन यह लोग ठेके के पैसे नहीं दे रहे थे। एक दिन दुखी हो कर सुबेग सिंह ने उन को कह दिया कि वोह कचहरी में दावा करेगा। कुछ दिन बाद इन भाईओं ने उसे कहा कि सुबेग सिंह आ कर अपने पैसे ले जाए। जब सुबेग सिंह उन के घर आया तो इन भाईओं ने सुबेग सिंह को कुल्हाड़े से काट कर अपने पशुओं वाले मकान में दबा दिया। बहुत दिन गुज़र गए, जब भी सुबेग सिंह की पत्नी उन से सुबेग सिंह के बारे में पूछती तो वोह कह देते कि सुबेग सिंह वहां आया ही नहीं था। धीरे धीरे उस घर से बदबू आने लगी।

यह भागय कहें या कुछ और कि एक दिन एक थानेदार और बहुत से सिपाही उधर से गुज़रे और बदबू से उन्हें कुछ शुबह हुआ और दरवाज़ा खुलवाया। उन्होंने मट्टी खुदवाई तो लाश दिखाई दी। पुलिस ने उन दो भाईओं को हाथ कड़ियाँ लगा दी। जब सारी बात मालूम हुई तो पता चला कि इन दो भाईओं ने आधी लाश एक तालाब में फैंक दी थी जिस को ढाब बोलते थे और रहती आधी फेंकने की इंतज़ार में थे कि पकडे गए।
आधी लाश की हड़ीआं तालाब में गाँव के बहुत लोग ढून्ढ रहे थे। मैंने जो देखा बहादर की हवेली में पुलिस के लोग बैठे थे और एक डाक्टर सारी हडिओं को एक एक करके उन को कपड़ों में लपेट कर हडिओं के नाम लिख लिख कर बक्सों में रख रहा था। यह नया डाक्टर गोपाल सिंह था जो हमारे गाँव में नया नया आया था । दोनों भाई हाथ कड़ियों में बैठे थे। थानेदार के बोल अभी तक मेरे कानों में गूँज रहे हैं ” ओए तुम कितने ज़ालिम हो, एक पांच सौ रूपए की खातर एक खानदान तबाह कर दिया “.

बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है, एक भाई को बदमाश दुश्मनों ने मार दिया था और इन दो को बीस बीस साल की जेल हो गई। बूढ़ा बाप अब धक्के खा रहा था। वोह एक कपडे में सब्ज़ियाँ बाँध कर गली गली बेचता रहता। एक दफा मेरे पिता जी ऐफ्रीका से आये हुए थे और यह बूढ़ा रोज़ हमारे घर आ जाता और आमों के मौसम में जबरदस्ती आम दे जाता, उस को पता होता था कि मेरे पिता जी पैसे दे देंगे। उस विचारे को बेचने के लिए आवाज़ भी देनी नहीं आती थी। उस को देख कर तरस आता था। जब वोह चला जाता तो पिता जी बाद में हंस पड़ते और कहते,” बुराई का अंत बुरा ही होता है “.

इसी तरह एक और बदमाश था जिस ने एक कालेज में पड़ते हुए लड़के के पिता को घर से निकाल कर मार दिया था। उस लड़के ने पढ़ाई छोड़ दी थी और वोह भी बदमाष बन गिया था । उस ने भी कुछ दोस्त ले कर अपनी गैंग बना ली थी और राइफल भी ले ली थी। इकठे हुए लोग तो मैंने देखे थे लेकिन जो हुआ मैंने नहीं देखा लेकिन यह तो आम बात थी. हर तरफ यह ही बात बहुत दिनों तक चलती रही। जो मैंने सुना वोह यह था कि यह लड़का इस ताक में था कि कब उस के पिता का कातिल घर आये और कब वोह उसे मार डाले। एक शाम को जब उन को पता चला कि कातिल घर में है तो सभी उस के घर आ गए और उसे पकड़ लिया। पहले उस को एक रस्से के साथ बाँधा। वोह मिनतें करने लगा लेकिन वोह लड़का बोला, ” तू ने मेरे पिता को छोड़ा था?”. फिर उन्होंने उस आदमी को ऊपर उठा कर दीवार के ऊपर से बाहिर फैंक दिया। गाँव में बहुत दूर तक उसे घसीटते ले गए, लोग भी पीछे पीछे यह तमाशा देखते जा रहे थे और गाँव के बाहिर जा कर उसे तलवार से काट दिया। इसी तरह एक और खून हुआ। यह लोग भी बदमाश थे और इन को जब यह लोग खेतों में हल चला रहे थे तो इन के दुश्मन बदमाशों ने गोली मारी और दो को मार दिया। वोह दिन बहुत बुरे थे।

(चलता…)

6 thoughts on “मेरी कहानी – 25

  • RAJKISHOR MISHRA [RAJ]

    बहुत ही मार्मिक ह्दय स्पर्शी कहानी

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      राज किशोर जी , बहुत बहुत धन्यवाद .

  • Man Mohan Kumar Arya

    आत्मकथा का वृतांत पढ़ा। लोगो में बुराइयों का कारण ईश्वर का सत्य व यथार्थ ज्ञान न होना और यह न जानना कि हम जो कर रहें है उसका फल सरकारी न्याय व्यवस्था तथा ईश्वर की व्यवस्था से अवश्य ही मिलेगा। इस अव्यवस्था का कारण महाभारत के बाद अज्ञान, अंधविश्वासों एवं कुरीतियों की वृद्धि भी थी। अच्छे संस्कारों से मनुष्य अशुभ कर्म करना छोड़ता है और अशुभ संस्कारों वा ज्ञान के कारण बुरे कामों को करता है। हार्दिक धन्यवाद।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन भाई , अब तो यह यादें ही हैं , वोह सभी लोग इस दुनीआं से जा चुक्के हैं . उस समय तो मानता हूँ अन्पड़ता थी लेकिन आज तो पड़ लिख गए हैं , फिर यह बुराई उसी तरह चल रही है . कुछ दिन हुए यहाँ एक गुरदुआरे में दो गुटों के बीच मीटिंग के दर्मिआन जम कर लड़ाई हुई , बीस पचीस आदमी पुलिस फ़ोर्स के आ गए . यहाँ इंग्लैण्ड में यह हो रहा है और धर्म के नाम पर . किया हो रहा है हमारे समाज में , समझ नहीं आती .

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , आप ने ठीक कहा , कि अगर यह गुटबंदी बंद हो जाए तो गाँव की जिंदगी शहरों से कहीं अधिक अच्छी होगी , मैंने तो अपने गाँव का ही चित्रण किया है लेकिन यह सभी गाँवों में था .अब का तो मुझे इतना गियान नहीं है , लगता है होगा तो अब भी . हर चीज़ जो चमकती है सोना नहीं होती , गाँव की जिंदगी एक तरफ अच्छी है तो दुसरी तरफ यह लड़ाई झगडे उन लोगों को जाहिल कहने पर मजबूर कर देती है . जो मैंने उस वक्त देखा था उस को तो लिखना ही मुश्किल है .

  • विजय कुमार सिंघल

    भाई साहब, यह कड़ी पढ़ते हुए लगा कि हमारे गाँव का ही चित्र खींचा है. हमारा गाँव दघेंटा (ब्लाक बल्देव, जिला मथुरा) आस पास के इलाके में डकैतों के लिए मशहूर रहा है. एक बिरादरी के बहुत से लोग खेती के साथ साथ अपराध भी करते हैं. उनमें गुटबाजी है, इसलिए आपस में मारकाट भी करते रहते हैं. कई हत्याएं हो चुकी हैं.
    अगर गांवों में अपराध न हों तो वे स्वर्ग बन जाएँ.

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