कर्मपथ
आज की इस अव्यवस्थित व्यवस्था में |
हर व्यक्ति व्यवस्थित होना चाहता हैं |
परन्तु उसकी राह में आती हैं बाधाएं|
फिर भी वह निरन्तर संकल्पित रहता है |
जब वह करता है किसी की भलाई |
बदले में मिलती है उसे बुराई |
कुछ क्षण के लिए वह होता है आहत |
तभी अंतरात्मा देती है उसे आवाज |
चल उठ !अभी यात्रा तो की है आरम्भ |
आरम्भ में ही तू क्यों है शांत ?
अगर तू होता है शांत |
तो इस देश का क्या होगा ?
देश तो इन्ही कर्मठों पर स्थित है |
पुनः इन बातों को सुन व्यक्ति |
अपनी यात्रा का करता हैं प्रारम्भ |
काटों से भरे रास्तों पर बढाता अपना कदम |
मार्ग के मध्य में लड़खड़ाते उसके कदम |
परन्तु स्वयं के आत्मविश्वास से |
बढ़ते जाते उसके कदम |
फिर कभी न पीछे हटने की सोच |
निरन्तर बढाता जाता अपना कदम |
— निवेदिता चतुर्वेदी
बढ़िया !