कवितापद्य साहित्य

कर्मपथ

आज की इस अव्यवस्थित व्यवस्था में |

हर व्यक्ति व्यवस्थित होना चाहता हैं |

परन्तु उसकी राह में आती हैं बाधाएं|

फिर भी वह निरन्तर संकल्पित रहता है |

जब वह करता है किसी की भलाई |

बदले में मिलती है उसे बुराई |

कुछ क्षण के लिए वह होता है आहत |

तभी अंतरात्मा देती है उसे आवाज |

चल उठ !अभी यात्रा तो की है आरम्भ |

आरम्भ में ही तू क्यों है शांत ?

अगर तू होता है शांत |

तो इस देश का क्या होगा ?

देश तो इन्ही कर्मठों पर स्थित है |

पुनः इन बातों को सुन व्यक्ति |

अपनी यात्रा का करता हैं प्रारम्भ |

काटों से भरे रास्तों पर बढाता अपना कदम |

मार्ग के मध्य में लड़खड़ाते उसके कदम |

परन्तु स्वयं के आत्मविश्वास से |

बढ़ते जाते उसके कदम |

फिर कभी न पीछे हटने की सोच |

निरन्तर बढाता जाता अपना कदम |

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

One thought on “कर्मपथ

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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