ग़ज़ल
वो ख्वाब में आये आकर चले गये।
मेरे दोस्त मुझसे हाथ छुड़ाकर चले गये।।
रहता था मैं अकेले अकेला ही रह गया।
वो धीरे -धीरे गैर के होते चले गये।।
मालूम उनको है मेरे दिल का माजरा।
तब भी वो मुझको छोड़ कर ऐसे चले गये।।
गैरों पे करम करते वो रहते हैं हरदम।
अपनों पे सितम ढा के वो क्यूँ चले गये।।
मत याद कर ‘अरुण ‘ उन्हें तू अब तो भूल जा।
मझधार में जो छोड़कर तुमको चले गये।।
— अरुण निषाद ,सुलतानपुर
बहुत खूब !
pranam sir ji