चीनी : कितनी मीठी ?
लोग समझा रहे थे कि बेटा, चीनी सीख लो, किस्मत चमक जाएगी । चीन जाने का टिकट पक्का क्योंकि अपने देश मे चीनी जानने वाले बहुत कम हैं। पहली बार कनफ्यूज़न पैदा हूआ कि चीनी खायी जाती है या सीखी जाती है। खैर, ज्ञान का वर्धन हुआ तो जाना कि इसी नाम की एक भाषा भी है। जब नाम इतना मीठा है तो भाषा कैसी होगी ! इसी उत्सुकता ने फँसा दिया । पता चला कि इस भाषा में जितने अक्षर होते हैं उतने दूसरी भाषाओं में शब्द होते हैं। हो सकता है कि अक्षर गढ़ने में लोग इतने मस्त हो गये हों कि शब्दों को बनाना याद ही न रहा हो। जब भाषा ही चीनी हो तो ऐसा संभव है।
शब्दों पर जब गौर किया तो यकीन मानिये, तुर्क न होते हुए भी खुदा याद आ गया। चाहे जैसे लिख लें और चाहे जैसे उच्चारित कर लें। उपर से नीचे लिखिये चाहे नीचे से उपर, बाएँ से दाएँ लिखिये चाहे दाएँ से बाएँ, आपकी इच्छा पर है। इसकी वजह यह मिली कि एक ही अक्षर को अलग अलग लोगों ने अलग अलग रूप और उच्चारण दिया । लेखन कला को भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता दे दी गयी। अब आप इसे आपसी मेल भाव कहें या साम्यवादी सरकार का स्टालिनी फरमान कि अक्षरों के सभी रूपों को वर्णमाला में जगह दे दी गयी। इससे जहाँ ‘सर्व जन संभाव’ चरितार्थ हुआ वहीं तकरीबन 56 हजार अक्षर ‘वर्ण बोरे’ में समा गये। अगर इसे माला रूप में रखते तो निश्चय ही इसे पहनने वाला बोझ से दब कर मर जाता ।
इस भाषा का शब्द विन्यास भी अजब है। प्राकृतिक भाषा में किसी चीज़ को बताने के लिये उसका चित्र बना दिया जाता था। कुछ ऐसी ही बानगी चीनी की भी है, अर्थात, 56 हजार अक्षर भी कम पड़ जाते हैं । और शब्दों का उच्चारण तो और भी हैरतअंगेज़ है। बहुत पहले चीन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री क्रमशः माओ त्से तुंग और चाऊ एन लाई हुआ करते थे। कुछ साल बाद पता चला कि ये माओ से डंग और झाऊ इन लई हैं ।
इसी प्रकार उस देश की राजधानी भी अपना चरित्र बदलने मे माहिर है । जब हम छोटे थे तब ये पेकिंग होती थी। जब बड़े हुए तो ये बीजिंग बन गयी। हमने खुद को समझा लिया कि भइया, पहले गलत थे सो अब सुधर जाओ। और आज दूरदर्शन पर पाया कि हम फिर भी गलत रहे क्योंकि इसका नाम तो पेईचिंग है। बस साहब, यहीं आ कर चीनी सीखने के बजाय खाना ज्यादा आसान लगा और मैंने चीन जाने का ख्वाब छोड़ दिया। और क्या करते, जब घर बैठे यह हाल हुआ जा रहा है तो वहाँ जा कर तो न जाने क्या होगा।
हा हा हा… चीनी भाषा में अनगिनत अक्षर ही नहीं होते बल्कि शब्दों के अर्थ भी अनेक बार सरकारी आदेश से बदल दिये जाते हैं। जैसे पहले ‘माओ मर गया’ जिस तरह लिखा जाता था, माओ के बाद आयी सरकार ने उसका अर्थ बदल दिया। अब उसका अर्थ होता है- ‘माओ को फाँसी दे दो।’ इस बात की पुष्टि मैंने एक चीनी भाषा विशेषज्ञ से की है।