लघुकथा : पछतावा
“बाबा आप अकेले यहाँ क्यों बैठे हैं, चलिए आपको आपके घर छोड़ दूँ | ”
बुजुर्ग बोले: “बेटा जुग जुग जियो तुम्हारे माँ -बाप का समय बड़ा अच्छा जायेगा | और तुम्हारा समय तो बड़ा सुखमय होगा |”
“आप ज्योतिषी हैं क्या बाबा |”
हंसते हुय बाबा बोले – “समय ज्योतिषी बना देता हैं | गैरों के लिए जो इतनी चिंता रखे वह संस्कारी व्यक्ति दुखित कभी नहीं होता | ” आशीष में दोनों हाथ उठ गये |
“मतलब बाबा ? मैं समझा नहीं | ”
“मतलब बेटा मेरा समय आ गया | अपने माँ बाप के समय में मैं समझा नहीं कि मेरा भी एक न एक दिन तो ऐसा समय आएगा | समझा होता तो ये समय ना आता |” नजरें धरती पर गड़ा दी यह कहकर |
— सविता मिश्रा
अच्छी लघुकथा. आँखें खुलने में बहुत देर हो गयी. काश लोगों की आँखे समय पर खुल जाएँ.