कविता

कविता =अतुलनीय माँ

अतुलनीय माँ का प्रताप ,
नहि शब्द है माँ शारद के पास ,,,
कवि थकित होय वह शब्द खोज ,,
मिले न कोइ शब्द योग्य ,,
सागर से लेकर हिमगिरि तक ,
सागर सा गहरा दिल माँ का ,,,,
पर खारा होता जल उसका ,,,
करूँ तुलना गिरि खण्डों से
मन उनका ऊँचा होता ,,,
माँ में कोमलता बसती है ,,
गिरि खंड हुआ करते कठोर ,,
रवि, शशि और तारामंडल भी
तुलना में फीके पड़ते हैं ,,
बात करूँ जब देवों की ,
, माँ के चरणों में झुकते हैं,,
माँ अनुभूति की दिव्य कड़ी ,
जिसमे मोती गुछ जाते हैं ,,
माँ की मिलती जिसको छाया ,
, अपने आप खिल जाते हैं ,,
स्वयं झेलती दुःख धारा ,
, बच्चों पर प्यार लुटाती हैं ,,,
ग्रीष्म उष्णता की तपन सदा सहे
ये माँ ,,

मगर लाडले को रखे
सदा चवर [पंखें ]की छावं ,,,
सदा चवर की छावं लगे
यह प्रीति अनोखीं ,,,
मलयागिरि का शीत पवन
भी फीका लागे ,
माघ और सावन की रातें ,,
इनका करें गुणगान सदा ,,
त्याग ,प्रेम , बलिदान की मूरति ,,
ममता की परिधान सी सूरति ,,,
लिए बेदना माँ जीती है ,,,
अपना प्यार तुम्हे देती है ,,,
ऐसी प्यार की मूरति है माँ ,,
सारें जहाँ में खूबसूरत ,,-= है माँ ,,
मातु दिवस की शुभ बेला में ,,,
कोटि – कोटि अभिनन्दन ,,,
सदा ही आता रहे मदर डे ,,,
पावन प्रेम का संगम ,,,
दुनियां की मुस्कान है माँ ,,
सारें जहाँ की प्राण है माँ ,,,,,
राज की कलम मे उतने शब्द नहीं है
करूं में माँ तुलना उतनी शक्ति नही है ,
अनन्त आकाश मंडल भी

सदा गुणगान करता है
माँ तेरी ममता ,के सागर मे
डूबा [झुका , नतमस्तक] संसार है ,
राजकिशोर मिश्र [राज]
10/05/2015
[कृति १९९५ प्रतापगढ़ ]

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

5 thoughts on “कविता =अतुलनीय माँ

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    माँ तू मेरे दिल मे समाई है ,

    जहाँ की हर खुशी आप सेपाई है ,,,

    मै रोता था सीने से लगाती थी

    आपके आँखो से मृदुलता

    झलक जाती थी

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय श्री विजय सिंघल जी आपकी पसंद एवम् प्रतिक्रिया के शुक्रिया एवम् धन्यवाद हौसला अफजाई के लिए आभार

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राज किशोर जी , आप की कविता पड़ कर मुझे मेरी माँ याद आ गई , बूडा हो गिया हूँ लेकिन माँ हमेशा याद आती है , मुझे उन से बहुत पियार मिला है .

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय श्री गुरमेल सिंह भमरा जी आपकी पसंद एवम् प्रतिक्रिया के शुक्रिया एवम् धन्यवाद हौसला अफजाई के लिए आभारमाँ तू मेरे दिल मे समाई है ,

      जहाँ की हर खुशी आप सेपाई है ,,,

      मै रोता था सीने से लगाती थी

      आपके आँखो से मृदुलता

      झलक जाती थी

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