कविता

ज़रा चाय ले आना

फिफ्टी -फिफ्टी की दुनियाँ का ,आया नया जमाना । बीबी प्रियतम से कहती है ज़रा चाय ले आना । । आज मुझे कविसम्मेलन में , कविता नई सुनानी है । चिंटू पिंटू की मौसी की , रचना बहुत पुरानी है । । कापीराइट्स के लफड़े में , प्रियतम मुझे न पड़ना है । बत्तीस एक […]

कुण्डली/छंद

कृपाण घनाक्षरी [अंत्यानुप्रास ]

कृपाण अंत्यानुप्रास , छ्न्द गेयता विकाश, यति गति हो प्रवाह, आठ चौगुना विवेक। वर्ण वर्ण घनाक्षरी, कवित्त चित्र चाल से, अंत गाल गुरु लघु, भाव भावना प्रत्येक। अनुप्रास पाँच पुत्र, छेक वृत्य श्रुत्य अंत्य, संग में लाटानुप्रास , छ्न्द अलंकार नेक। शृंगार अंत्यानुप्रास , चार चाँद दिख गया, दामिनी कड़क उठी, स्वर व्यंजना [व्यंजन] अनेक […]

भाषा-साहित्य

दोहा छ्न्द के प्रकार – गुरु लघु विशेष

दोहा विषम चरण में ४+४+३+२ या ३+३+३+२+३ =१३ सम चरण =३+३+२+३ या ४+४+३=११ विषम चरणान्त लघु दीर्घ [१,२] सम चरण तुकांत चरणान्त [दीर्घ , लघु [२+१] आवश्यक है कुछ अपवादों को छोड़कर -दोहा छ्न्द अनादि सागर है जिसका कोई अंत नहीं , छ्न्द अधिष्ठाता शेष हैं छ्न्द के जनक पिंगल नें दोहा को २३ श्रेणियों […]

कविता

विरहण हिया अंगार 

पानी- पानी हो गयी, विरहण हिया अंगार । बसुरी मोहन की बजी. कविता का शृंगार । चार चाँदनी चाँद लखि चतुर चकोर विहार । गज़मुक्ता मणि ओज द्वय नाग नाग मन प्यार । मुंबई मे वर्षा हुई    भीगा नैनीताल । विरहण दिल स्वाहा कहे , खट्‍टे लगे रसाल। नही चाँदनी जिसको रोशन किया , माँ के चरणों मे रोशन […]

मुक्तक/दोहा

सारसी मुक्तक -फसल

फसल उगाता वह मर जाता, मँहगाई की मार जहर घोलता राजनीति जब, तन्हाई में प्यार बरस रहा जल झुलस रहा घर, विधना कैसा खेल चढ़ा अषाढ़ विषाद भरा दिल , तरुणाई लाचार — राजकिशोर मिश्र राज

कुण्डली/छंद

मत्तगयन्द सवैया

योग भोग भगा मन योग सज़ा तन जीवन ज्योति प्रभाकर धामा। मंत्र महा मनरोग निवारक साधक साधु दिवाकर नामा। पाठक पाठ करे दिन रात विशुद्ध रमा कमलाकर श्यामा । योग सुधा कलिकाल प्रभाव मिटावत भोग सुधाकर यामा ।। जामुन जामुन के गुण मित्र अनेक जरा चख रोग कुदोष भगाओ पाचन शक्ति सुचार करे नित शक्कर […]

कुण्डली/छंद

कुंडलिया- ज्ञानी

ज्ञानी ज्ञानिक ढूढ़ता, सतत पंथ ज्यों संत माया मोह विराग में , गुण गति कैसा अंत गुणगति कैसा अंत , पन्थ देखे नित सज्जन माया करे प्रलाप , काम क्रोधी मन दुर्जन जपत संत हरि नाम, त्याग कलियुग गुण ध्यानी कहे राज चितलाय, सरस गुण महिमा ज्ञानी — राजकिशोर मिश्र ‘राज’

कुण्डली/छंद

विधाता छ्न्द— गाँव

मनोरम गाँव की गलियाँ छटा मन को लुभाती है बगीचा आम महुआ आँवला कटहल सजाती है सई की धार भी अनुपम लता छवि श्याम सुंदर की मधुर झंकार उपवन की मुझे बरबस बुलाती है — राजकिशोर मिश्र ‘राज’

सामाजिक

विश्व गौरैया दिवस — २०मार्च

बालकपन की दास्ताँ भी अजीब होती , माया मोह से दूर उसका घरौंदा होता है | नीलगगन में पक्षी का स्वछ्न्द उड़ाना , कौतूहल बस उनकी उड़ान को देखना , नवओज का संचार कर देता है | काश मेरे भी पर होते , हम भी नीले गगन मे उड़ रहे होते | मिट्टी में खेलना […]

राजनीति

हिंदू ह्रदय योगी

लोकतंत्र अँग्रेज़ी शब्द डेमॉक्रेसी हुआ है डेमॉक्रेसी जनतंत्र , लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ का जनता का शासन । अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को बड़े मार्मिक शब्दों में परिभाषित किया है” लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है ।” भारतीय संविधान के प्राण लोकतंत्र में निहित है । भारत विश्व […]