लघुकथा

बड़ी सोच

सेठानी रसोईघर में बरतन समेटते हुए बड़बड़ाए जा रही थी, तभी पड़ोसन आ धमकी जले पर नमक छिड़कने ।

“क्या हुआ पुरसोत्तम की माँ, ,क्यों सुबह-सुबह इन बेजान बरतनों पर बिगड़ रही हो?”

“अरे सुमित्रा बहन, आओ….आओ, देख ना सूरज सिर पर चढ़ आया पर वो सु गना है कि अभी तक नहीं आई,,घर का सारा काम पड़ा है।”

“पुरसोत्तम की मां शायद तुम भूल गयी, वो कल ही बता तो रही थी कि उसकी बहू भी माँ बनने वाली है, हो सकता है इसीलिए देर हो गयी हो।”

” अरी हां, ,मुझे तो याद ही नहीं रहा, जरूर उसके घर खुशियाँ बरसी होंगी। जरूर उसका पोता हुआ होगा। कल शर्मा जी के घर भी पोता हुआ है। भगवान को हमारा ही घर मिला था पत्थर बरसाने को। पता नही मरने से पहले पोते का मुंह देख भी पाउंगी या नही।”दुखी होते हुए सेठानी बोली।

तभी दरवाजा खुला हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए हुए सुगना आती हुई दिखायी दी। उसके चेहरे से खुशी टपक रही थी।
चहकते हुए बोली, “लो सेठानी जी पहले मुंह मीठा करो”, कहते हुए उनके मुख में मिठाई का टुकड़ा रखने लगी तो सेठानी बोली, “तुमने आज इतनी देर कर दी, पता है घर में कितना काम था?”

“बीबी जी, मेरे घर लक्ष्मी आई है, मेरी पोती हुई है। अब तम्ही बताओ बहू को खिलाना-पिलाना था, बच्ची को नहलाने धुलाने में टेम तो लगेगा ना।”

“पर बीबी जी थम क्यूं उदास बैठी हो? अपनी रमा बहू ना दिखाई दे रही, तबियत तो ठीक है ना!”

“कल रात से अस्पताल मैं है, सबेरे-सबेरे मनहूस खबर आ गयी कि बहू ने फेर छोरी पैदा कर दी। मेरा तो मन भी नहीं उसका मुँह देखने का। इसी खातिर मैं अस्पताल भी ना गयी।” माथे पे हाथ रख के मायूस होते हुए सेठानी ने कहा।

“अरे वाह सेठानी, घर में देवी आई और थम हो के मातम मना रही हो ? म्हारा जिगरा देखो, मजदूरी करके पेट भरें, फेर भी पोती होण की खुसी मैं सारी बस्ती में मिठाई बांट कर आ रही हूं थारे धोरे तो बहोत धन दौलत है, अपनी पोती न पढ़ालिखा के इतना बड़ा बनाओ के एक दिन थारा नाम रोशनी कर। आज छोरियां के ना कर सकै ? थम हो के खुसी मनाने के बजाए रो रही हो।”

“सुगना सच में तू तो बहुत समझदार है, तूने तो म्हारी आंखें ही खोल दी, चल जल्दी से चल अस्पताल , पोती न देख के आसीरबाद दूंगी, और सब को मिठाई भी खिलाउंगी।” खुशी खुशी-खुशी सुगना का हाथ पकड़कर सेठानी अस्पताल की ओर चल दी ……

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. [email protected]

One thought on “बड़ी सोच

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी और प्रेरक लघु कथा !

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