कविता

एक शहर जो छूटा था

एक शहर में मैं आया था
अपने गाँव से
शहर में मैं आया कैसे
मैं तो लाया गया था
गाँव से
जब मैं सिर्फ पाँच साल का था

पिता की नौकरी लगी थी
और हमारा स्थानांतरण हुआ था
हमारी माता और छोटे भाईयों के साथ

जब गाँव छूटा था
कच्ची उमर थी
कोई कच्चा धागा टूटा था

गाँव मेरे होश में नहीं था
और वह शहर बेहोश था
जहाँ मैं सड़कें और नदियाँ पार करा लाया गया था

शायद मेरा गाँव अफ्रीका था
और शायद मैं कोई अफ्रीकी भाषा बोलता था
जब महल्ले की एक लड़की ने पूछा था
तुम्हारा नाम क्या है
और मैंने कहा था
तहरा के हम बड़ी मारब
(तुमको मैं बहुत मारूँगा)

और जब मास्टर ने पूछा था
व्हाट इज योर नेम
मैं डर गया था
मास्टर जादूगर है
उसने कहा था
रिसेन्टली केम फ्राम अफ्रीका
मैं अफ्रीका से आया हूँ
और शहर के अमरीका में कैसे बस गया हूँ
उसे कैसे पता

बरसों बरस मेरा शहर
होनोलुलू हुआ
क्वालालाम्पुर हुआ
लंदन हुआ
वाशिंगटन हुआ
यूरोप हुआ
अमरीका हुआ

हमने अफ्रीका के कई चिह्न
अमरीका में लगाये
गिल्ली डंडे खेले
कंचे फेंके
लट्टू नचाये
पतंग उड़ाये

यह शहर धीरे धीरे
मेरा हुआ था
तब न मरा हुआ था

इसकी गलियाँ अपनी हुई थीं
इसकी सड़कें अपनी लगी थीं
इसकी नदी में बहे थे लो
इसकी हरियाली में रंगे थे

इसके लोग आत्मीय हुए थे
इसके बाग परिचय लिये थे

यहाँ पढाई हुई
यहाँ लिखाई हुई
यहीं से नौकरी हुई

तब मेरा फिर स्थानान्तर हुआ
कोई अमरीकी देश था शहर
जहाँ कोई अफ्रीकी सभ्यता पनप रही थी

कोई कहीं टूटा था
एक शहर जो छूटा था.

रामेश्वर सिहं राजपुरोहित “कानोडिया”

रामेश्वर सिहं राजपुरोहित "कानोडिया"

निवासी- बालोतरा, जिला - बाङमेर, सम्पर्क सूत्र - 9799683421 साहित्यिक गतिविधियां:- अखिल भारतीय अणुव्रत संस्थान, नई दिल्ली के द्वारा सन् 2013 में रचना ‘‘मार्गदर्शन’’(नाटक) का चयन हुआ। इसका ‘‘सफर अणुव्रतों का-शिक्षक की कलम से भाग 3’’ नामक पुस्तक में प्रकाशित भी किया गया। र्वा 2014 आखिरी शो’’(नाटक) राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान पर रहा और ‘‘सफर अणुव्रतों का-शिक्षक की कलम से भाग 4’’ में प्रकााित हुआ। नवोदित 11 कवियों ने मिलकर के लखनऊ के प्रकाशिक (मणिमाला प्रकाशन-लखनऊ) से ‘‘बेजोड़ बाँसुरी’’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (2014) किया है। पाँच कविताओं का चयन हुआ जिसमें ‘वो चमक उठी तलवार’, ‘अटल चुनौती’, ‘ये जंगली भेड़ियें’, ‘रानी बिटिया’ व ‘वृत’ आदि कविताएँ है। अप्रकाशित साहित्य हैं जिसमें समाज कल्याण व आस-पास के वातावरण सम्बधि वर्णन भी है। इन साहित्य में -सिंहासन की भूख (उपन्यास) व कक्षा कक्ष, गलीया, शहर का कचरा, चलो साफ करे, गग नही मेरा घर, राहो से भटका, सावन आया, मजहब, क्या गायें, चलो बदलते है, नाा जीवन का नाा, बिमारीयों को निमन्त्रण उत्थान, अन्धविवास व पाखण्ड (नाटक) व दोशी कौन?, तारों की रानी, दहेज का दुःख, जमींदार का लोटा, ठाकूर की कुल्हाड़ी, आदत का लाचार, गधा और सेठ, मछरदानी, कर्ज की नौकरानी, माँ का प्यार, नवाब की नाकामी, जीवन के नेत्र, साटे का घाटा, अधूरे सपने, प्रकृति की प्रकृति, तेरे नाम जीवन, निरन्तर अभ्यास, मेरा वो एक दिन लौटा दो (कहानीयाँ) व सात स्वर, सर्द हवाऐं, रोहिड़े के फूल, छोटे-छोटे पौधे, अगर मैं बोलता, प्रातः काल, ऐसा कानुन बनाओं, चन्दा, स्वर्ग धरती पर है, दुामन को चेतावनी, हे मानव, राजनेता, बाढ़ व दर्द, हल्दी घाटी, सफलता ही लक्ष्य, सर्द सोना, और चाहत नही, नन्ही बच्ची, चल तु आज अपनी चाल में, मैं प्यास का पानी हूँ, एकल पुत्री जयते, आचार्य, नव कवि की बुआई, इतिहास का दर्द, मैं हूँ तेरे संग संग, अणुव्रत शिक्षक, भगवा ध्वज, मैं हिन्दी हूँ, वो दिन, राट्र का कबाड़ा, झील के किनारे, चलो बेचते है, कलम तु क्यो रोने लगी, रेत के गीत, जय हो, सुन्दर लफुन्दर, और बेच दो, ये जंगली भेंड़िये (कविताएँ) और कम्प्युटर लैब, ईद थी क्या?, ये आपके नेता है, वो गा रहा है, मन्दिर का पुजारी, बरसात है या तांडव, चलो सो जाते है, अब तो गा ले, (व्यंग्य) और लहर सखियाँ, धर्म बड़ा या कानून, मिडिया गलत दिशा में, पेड मिडिया, संयुक्त परिवार (लेख) आदि।

One thought on “एक शहर जो छूटा था

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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