गीतिका : विरहन
प्रियतम मेरे दूर बसे कैसे भेजूँ संदेश ?
डाल-डाल पर पंछी बसते कैसे करूँ आदेश ? १
खोज थकी मानस मंदिर में अनजाने में बीती रात,
अंधकार मय भइ विभावरि कैसे कहूँ अंदेश ? २
झर-झर बरसे बादल लागे बड़ा भयावन
बूँद -बूँद आतिश सम लागत कैसे सहूँ कलेश ? ३
सावन की घनघोर घटा लागे बहुत डरावन
मै विरहिन हिम तनया सम हूँ स्वयं हुए भावेश ४
प्रियतम मोर विदेश बसे सबहि रचावत प्रेम
मोहि निशा नागिन सी डसती पाऊँ बहुत कलेश ५
— राजकिशोर मिश्र [राज]
वियोग श्रृंगार की अच्छी कविता !
आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी हौसला अफजाई के लिए आभार
वाह वाह .
आदरणीय श्री गुरमेल सिंह भमरा जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया एवम् धन्यवाद