प्यार के बदले में….
प्यार के बदले में नहीं कुछ पाना चाहता हूँ
दूर से ही सही तेरा रूप निहारना चाहता हूँ
वो घडी भी आ गयी की तुझे अब जाना है
तेरी पलकों के भीतर छुप जाना चाहता हूँ
यादों की भी एक अलग सी दुनियाँ होती है
वहीँ पर मैं सदा के लिए रुक जाना चाहता हूँ
तेरी मोहब्बत के सिवाय पास मेरे क्या है
सरे राह तेरे कदमों तले लुट जाना चाहता हूँ
रोज रोज लिखता रहूँगा तुझे मैं प्रेम के खत
तेरी रूह से इस तरह मैं जुड़ जाना चाहता हूँ
किशोर कुमार खोरेन्द्र
सरे राह =राह में चलते हुए
ग़ज़ल में काफ़िये की तंगी है।
बढ़िया.