कविता

मोबाईल

 

जिन्दगी अब तो हमारी मोबाईल हो गई
भागदोड मे तनिक सुस्तालू सोचता हूँ मगर
रिंगटोनों से अब तो रातें भी हेरान हो गई |

बढती महंगाई मे बेलेंस देखना आदत हो गई
रिसीव काल हो तो सब ठीक है मगर
डायल हो तो दिल से जुबां की बातें छोटी हो गई |

मिस्काल मारने की कला तो जेसे चलन हो गई
पकड़म -पाटी खेल कहे शब्दों का इसे हम मगर
लगने लगा जेसे शब्दों की प्रीत पराई हो गई |

पहले -आप पहले -आप की अदा लखनवी हो गई
यदि पहले उसने उठा लिया तो ठीक मगर
मेरे पहले उठाने पर माथे की लकीरे चार हो गई |

मिस्काल से झूठ बोलना तो आदत सी हो गई
बढती महंगाई का दोष अब किसे दे मगर
हमारी आवाजे भी तो अब उधार हो गई |

दिए जाने वाले कोरे आश्वासनों की भरमार हो गई
अब रहा भी तो नहीं जाता है मोबाईल के बिना
गुहार करते रहने की तो जेसे आदत बेकार हो गई |

मोबाईल ग़ुम हो जाने से जिन्दगी घनचक्कर हो गई
हरेक का पता किस -किस से पूछें मगर
बिना नम्बरों के तो जेसे जिन्दगी रफूचक्कर हो गई

संजय वर्मा “दृष्टी”

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच

2 thoughts on “मोबाईल

  • विजय कुमार सिंघल

    मोबाइल पर अच्छी कविता !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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