कभी ख्वाबों में आती हो
कभी ख्वाबों में आती हो |
कभी यादों में आती हो||
कभी बाहों में आ जाओ|
मुझे यूं क्यों सताती हो ||
मेरा तुम गीत सुन-सुन के |
उसी को गुनगुनाती हो||
थामा कर हाथ हाथों में|
उसे फिर क्यों छुड़ाती हो|
बड़ी प्यारी सी लगती हो |
कभी जब मुस्कुराती हो||
— अरुण कुमार निषाद
वाह वाह ! बढ़िया ग़ज़ल !!
dhanyawad sir ji…….sadar pranam….