गीतिका/ग़ज़ल

कभी ख्वाबों में आती हो

कभी ख्वाबों में आती हो |

कभी यादों में आती हो||

कभी बाहों में आ जाओ|

मुझे यूं क्यों सताती हो ||

मेरा तुम गीत सुन-सुन के |

उसी को गुनगुनाती हो||

थामा कर हाथ हाथों में|

उसे फिर क्यों छुड़ाती हो|

बड़ी प्यारी सी लगती हो |

कभी जब मुस्कुराती हो||

अरुण कुमार निषाद

 

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032

2 thoughts on “कभी ख्वाबों में आती हो

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बढ़िया ग़ज़ल !!

    • अरुण निषाद

      dhanyawad sir ji…….sadar pranam….

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