गीत
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए,
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं
बिना बोले जो सुन पाए,
ऐसा संबंध कहाँ से लाऊं
प्रेम की बातें सब करते है,
लेकिन प्रेम कोई नहीं करता,
नैनों की भाषा जो समझे,
ऐसा प्रेमी कहाँ से लाऊं
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।
फूल पकड़ने की चाहत में,
अक्सर हाथ छिल जाते हैं
काँटे नहीं लगे हो जिसमें,
ऐसा फूल कहाँ से लाऊं
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए,
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।
जिसको देखो इस दुनिया में,
लगा तिजोरी भरने में,
औरों का भी पेट भरे जो,
वो इंसान कहाँ से लाऊं
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए,
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।
दुनिया मेरे गीत सराहे,
मन मेरा तुझे सुनना चाहे,
तेरे मन को जो भा जाए,
ऐसा गान कहाँ से लाऊं,
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।
— भरत मल्होत्रा
बहुत सुन्दर गीत !