कविता

गीत

आँसू का प्रतिबिंब दिखाए,
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं
बिना बोले जो सुन पाए,
ऐसा संबंध कहाँ से लाऊं

प्रेम की बातें सब करते है,
लेकिन प्रेम कोई नहीं करता,
नैनों की भाषा जो समझे,
ऐसा प्रेमी कहाँ से लाऊं
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।

फूल पकड़ने की चाहत में,
अक्सर हाथ छिल जाते हैं
काँटे नहीं लगे हो जिसमें,
ऐसा फूल कहाँ से लाऊं
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए,
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।

जिसको देखो इस दुनिया में,
लगा तिजोरी भरने में,
औरों का भी पेट भरे जो,
वो इंसान कहाँ से लाऊं
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए,
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।

दुनिया मेरे गीत सराहे,
मन मेरा तुझे सुनना चाहे,
तेरे मन को जो भा जाए,
ऐसा गान कहाँ से लाऊं,
आँसू का प्रतिबिंब दिखाए
ऐसा दर्पण कहाँ से लाऊं।

भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “गीत

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर गीत !

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