मुक्तक : नहीं देखा
दिल में समाकर जिसने, गुलिस्ताँ नहीं देखा
हमसफ़र बन साथ चलते, बागवाँ नहीं देखा
मंज़िलें देखी बहुत ,प्यार पर एतवार नहीं
कब राह चलते मिल गये, आसमाँ नहीं देखा
— राजकिशोर मिश्र [राज] १२/०५/२०१५
प्रस्तुत मुक्तक मे —-
रदीफ़ = नही देखा
काफिया = गुलिस्ताँ , बागवाँ, आसमाँ में आ की मात्रा पर अनुस्वर (अं) काफिया है
बहुत खूब , राज किशोर जी .
आदरणीय श्री गुरमेल सिंह भमरा जी आपकी पसंद एवम् प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया एवम् धन्यवाद हौसला अफजाई के लिए आभार
बढ़िया !
आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी आपकी पसंद एवम् प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया एवम् धन्यवाद
सुन्दर
प्रिय अरुण कुमार निषाद जी आपकी पसंद एवम् प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया एवम् धन्यवाद हौसला अफजाई के लिए आभार