अश्क
वृक्ष से टूटा था पत्ता रो उठा था बागवाँ
माँ के आँचल से झुका था दर्द का जब कारवाँ
हर गली सूनी हुई थी ना पता था रात-दिन
माँ सिसकियाँ भरती रही अश्क के सैलाब में
— राजकिशोर मिश्र [राज]
वृक्ष से टूटा था पत्ता रो उठा था बागवाँ
माँ के आँचल से झुका था दर्द का जब कारवाँ
हर गली सूनी हुई थी ना पता था रात-दिन
माँ सिसकियाँ भरती रही अश्क के सैलाब में
— राजकिशोर मिश्र [राज]
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वाह ! वाह !!
आदरणीयश्री विजय कुमार सिंघल जी त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
सुंदर
आदरणीया बहन विभा रानी श्रीवास्तव जी त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के लिए आभार
बेतीआं जब घर छोड़ कर जाती हैं तो दरख्त से पत्ता टूटने वाली बात ही तो होती है और पत्ता टूटने पर भी दूध या पानी निकलता ही है .
आदरणीय श्री गुरमेल सिंह भमरा जी हम आपके कथन से पूर्ण रूप से सहमत है जब बेटियाँ बाबुल का घर छोड़ कर अपने ससुराल की तरफ कदम बढ़ाती है खुशी और गम साथ उसे विदा करते हैं
आपके हार्दिक त्वरित प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया एवं धन्यवाद