तुम्हारी होना चाहती हूँ…
जब से तुमसे मिली हूँ
हर पल यही सोचती हूँ
काश हो कोई जादू का पिटारा
जो खोल दे मेरे भाग्य का सितारा
और बन जाऊँ, तुम्हारे ख्वाबों की मल्लिका
बिखर जाऊँ तुम्हारे स्नेह के इर्द-गिर्द
और खिल उठूँ तुम्हारे बागों में एक दिन
बनकर एक सुखद एहसास ………..
हाँ, मैं तुम्हारी होना चाहती हूँ ,
तेरे होने की आकांक्षा में
दिन -रात खुद से भी अकेली होती हूँ मैं
पर एक सुकून ,जो मुझे गहरे तक बांधे रखती है
वो है ,तेरे और मेरे विश्वास की कड़ी
समय के एस वीराने में शायद बहुत अकेली हूँ मैं
फिर भी, एक बेहतर सच को तलाशती हूँ ,
हाँ, मैं तुम्हारी होना चाहती हूँ ……..!
— संगीता सिंह ”भावना”
बढ़िया कविता !