मुक्तक
रुठती वो रहीं मैं मनाता रहा
दर्द के गीत मैं गुनगुनाता रहा
मुस्कुराती रहीं वो बड़े दर्प से
मैं तड़पता रहा छटपटाता रहा
— अरुण निषाद
रुठती वो रहीं मैं मनाता रहा
दर्द के गीत मैं गुनगुनाता रहा
मुस्कुराती रहीं वो बड़े दर्प से
मैं तड़पता रहा छटपटाता रहा
— अरुण निषाद
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अच्छा मुक्तक !
dhanywad sir ji…pranam…