मेरे दुख भरे पल की सुगबुगाहट!!
सुखमय जीवन जा रहा है, दुखमय जीवन आ रहा है
महसूस ऐसा क्यों आज, पल-पल मुझको हो रहा है ।
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सुख भरे यात्रा को मैं आज तक करते आया हूँ।
दुख भरे यात्रा को आज से मैं देख रहा हूँ ।
ये कितनी लम्बी यात्रा होगी कैसे जान पाऊँ।
इसी उधेड़बुन में आज मैं पल पल सोच रहा हूँ।
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मेरी जिन्दगी का एक-एक लम्हा क्यों बिखरता जा रहा है
जो सपने सजाये थे वो तिनका-तिनका बनता जा रहा है
इसे मैं कैसे इकट्ठा करूँ सुव्यवस्थित जीवन जीने के लिए
इस समस्या ने मेरे मानसिक तनाव को बढाता जा रहा है।
@रमेश कुमार सिंह ♌
कविता अच्छी है. पर आपके निराशावाद को कोई ठोस कारण नज़र नहीं आया. सुख और दुःख तो जीवन में आते ही रहते हैं. जब दुःख आएगा तो झेल लेंगे या उससे निबटने का रास्ता निकालेंगे. अभी से उसकी चिंता करके निराश हो जाना उचित नहीं.
जी श्रीमान जी!!