अरुणा शानबाग : एक श्रद्धांजलि
(42 वर्ष कोमा में रहने के पश्चात् बलात्कार पीड़ित अरुणा शानबाग की मृत्यु पर न्यायव्यवस्था को धिक्कारती मेरी ताज़ा रचना)
क्या लिख दूं कितना लिख दूं सब कुछ बेमानी लगता है,
कागज़ पर अंकित हर अक्षर पानी पानी लगता है,
तुम-हम-ये-वो सब के सब, क्या बदल सके, सब नाहक हैं
केवल दर्शक हैं टीवी के अख़बारों के ग्राहक हैं,
वो अरुणा जिसके यौवन के पृष्ठ कभी खुल जाने थे,
माँ बाबुल को बड़े प्यार से पीले हाथ कराने थे,
एक दरिन्दे ने हाथो से यौवन गाथा मेटी थी,
वही सुता ब्यालिस वर्षों से अस्पताल में लेटी थी,
संविधान के प्रावधान थे लचर, उसी में छली गयी,
दे कर के धिक्कार न्याय को वो कोमा में चली गयी,
उसका मरना आज भले ही मौन दिखाई देता है,
लेकिन मुझको उस अबला का शोर सुनाई देता है,
मानो मुझसे बोल रही हो, कह दो भारत वालो से,
संविधान के निर्माता से, काले कोट दलालों से,
नेता-वेता, संसद-वंसद सब की सब सरकारों से,
आजादी के बाद से बैठे, सत्ता के नाकारों से,
बंद करो कहना महान भारत है, तुम जग नायक हो,
ऊपर से लेकर नीचे तक सब के सब नालायक हो,
कायर हो सब कायरता से बाहर नही निकल पाए,
बलात्कार पर अब तक अपनी भाषा नही बदल पाए,
जो नारी की अस्मत लुटे, उसको रहम न बांटो जी,
चौराहे पर नंगा करके, बोटी बोटी काटो जी,
संविधान की लचर धरा पर कड़े नियम निर्मान करो,
बलात्कार पर अंग-भंग या मृत्यु दंड ऐलान करो,
उस दिन भी यदि अरुणा के अपराधी को काटा होता,
ना अरुणा का दिल रोता ना इस कवि का लेखन रोता !!!!!
—— गौरव चौहान
अरुणा शानबाग एक ऐसी कहानी है जिसमे सिर्फ पीड़ा ही पीड़ा है। एक स्त्री जो 42 वर्षों तक उस गुनाह की सज़ा भुगतती रही जो उसी के शरी और आत्मा पर हुआ था जिसमे उसका कोई दोष नहीं था। बलात्कार औरत की अस्मिता को ही नहीं उसकी आत्मा को भी छलनी कर देता है। मेरा प्रणाम अरुणा शानबाग़ को। अच्छी रचना दर्द बयान करती हुई। साधुवाद आपको।
अरुणा शानबाग एक ऐसी कहानी है जिसमे सिर्फ पीड़ा ही पीड़ा है। एक स्त्री जो 42 वर्षों तक उस गुनाह की सज़ा भुगतती रही जो उसी के शरीर और आत्मा पर हुआ था जिसमे उसका कोई दोष नहीं था। बलात्कार औरत की अस्मिता को ही नहीं उसकी आत्मा को भी छलनी कर देता है। मेरा प्रणाम अरुणा शानबाग़ को। अच्छी रचना दर्द बयान करती हुई। साधुवाद आपको।
मैं आपसे सहमत हूँ !
बहुत शानदार और मार्मिक गीत ! आपने अरुणा और हम सब की पीड़ा को शब्द दिए हैं.