पत्नी वृतांत
पत्नी ने झट से कहा
लाओ सौतन एक ,
नहीं द्वेष मन मे
मेरे रखो चाहे अनेक ,
रखो चाहे अनेक नहीं
एतराज हैं मनमे
कान्हा बनकर रास
रचाओ मेरे मन में १
एक कान्हा हज़ार गोपिका
बाँसुरी तेरी प्यारी
आकर्षण कान्हा तेरे में
खिंच जाती थी सारी,
खिंच जाती थी सारी
आज एक राधिका
नाच-नचाए
भूले बाप महतारी
लेकर शहर रहो तुम
देखी बहुत देहात यार
अब शहर रहो तुम ,
— राजकिशोर मिश्र [राज]
कविता कुछ स्पष्ट नहीं हुई !
आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी हम आपके कथन से पूर्णतया सहमत है
क्योकि उपर की पंक्तियाँ पति -पत्नी संवाद की भूल वश पोस्ट नही की गयी है
आप इसको सुधार सकते हैं. जो पंक्तियाँ छूट गयी हैं उनको जोड़ दीजिये.
आदरणीय सादर नमन , धन्यवाद एवम् आभार