श्मशान से सीखो
मौत की दहलीज पर
खड़े वृद्ध ने
कहा-अपने पुत्र से ।
तुम्हें देने को
कुछ नहीं मेरे पास
सदा रोटी खायी
ईमानदारी की ।
हमेशा साथ दिया
सच्चाई का ।
हाँ, हो सके तो
रखना एक बात याद
यदि कभी
काम, क्रोध, मोह, माया, ईर्ष्या, द्वेष का
पनपे भाव मन में ।
चले जाना
श्मशान की ओर
कुछ पलों के लिए
बेहिचक, बेझिझक ।।
— मुकेश कुमार सिन्हा, गया