कविताहास्य व्यंग्य

जिस थाली में खाते है सब..

बात पते की बतलाता हूं,
जिस पर मुझको खेद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
ढोंगी क्या-पाखण्डी क्या,
ये अभिनेता है जोर के,
करते है सब तरफ दलाली,
खाते पैसे चोर के,
नेता पाई-पाई दबा के रखते सारे भेद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
दूध रंग की गाड़ी में ये,
लाल निगोड़े डोलते,
काले मन से धवल टोपियां,
घी-शक्कर सी घोलते,
चिकनी-चुपड़ी बातें, इनकी मानसिकता कैद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
वादों की भरमार लिए ये,
घर-घर जब-जब ताकते,
वोटों की खातिर ये बगलें,
एक-दूजे की झांकते,
मतदाताओं से ज्यादा ये नमक-हराम मुस्तैद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
हमने ही मतदाता प्यारे!
इनको शीश बिठाया है,
कुछ लालच के वशीभूत,
अपना ईमान गंवाया है,
हम ही इसकी दवा ‘प्रजापति’
हम ही इसके वैद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!

जिस थाली में खाते है सब….!!

सूर्यनारायण प्रजापति

जन्म- २ अगस्त, १९९३ पता- तिलक नगर, नावां शहर, जिला- नागौर(राजस्थान) शिक्षा- बी.ए., बीएसटीसी. स्वर्गीय पिता की लेखन कला से प्रेरित होकर स्वयं की भी लेखन में रुचि जागृत हुई. कविताएं, लघुकथाएं व संकलन में रुचि बाल्यकाल से ही है. पुस्तक भी विचारणीय है,परंतु उचित मार्गदर्शन का अभाव है..! रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'रश्मिरथी' नामक अमूल्य कृति से अति प्रभावित है..!

4 thoughts on “जिस थाली में खाते है सब..

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह बहुत खूब

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      धन्यवाद #राज भाईसाहब

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा गीत ! इस देश में बहुत से नमकहराम हैं जो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं. अपने उनको बेनकाब कर दिया है.

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      धन्यवाद बड़े भाईसाहब

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