कविता

जान पहचान

मेरे कसबे में समंदर नहीं है
कुछ कतरे पानियों के कैद है,
तालाबों में
जब भी घर जाती हूँ
तो एक शाम गुज़ार देती हूँ
मंदिर वाले तालाब की सीढ़ियों पर,
तालाब का पानी बदलता नहीं कभी
कैद है.……
शायद इसलिए पहचानता है मुझे,
जब भी मिलती हूँ
तो कहता है –
“अच्छा हुआ तू आ गयी
बहुत सी बातें बतानी हैं तुझे।”
और फिर शुरू हो जाता है
वो फलां दादी फौत हो गयीं,
अलां के घर बेटा हुआ है
चिलां बाबू की नौकरी छूट गयी,
मगरिब की तरफ का पीपल काट दिया
सड़क बनाने वालों ने,
वगैरा वगैरा,
फिर मुझसे मुखातिब होकर
पूछता है –
“अच्छा ये तो बता
शहर के मिज़ाज़ कैसे हैं
कौन बताता है तुझे
शहर की ख़बरें ?”
मैं जवाब देती हूँ-
“समंदर है न ढेर सा पानी ……. “
और इतना कहते ही
एक बगुला पानी का
गले में अटक जाता है,
खुदा हाफ़िज़ कह चली आती हूँ
वापस शहर में,
जहां एक बड़ा सा समंदर है
रोज़ समंदर के किनारे बैठी
देखती हूँ,
कैसे सैंकड़ों गैलन पानी
बदल जाता है, गुज़र जाता है,
एक आध कतरा पानी का
मेरी तरफ भी उछाल देता है समंदर
बस यूं ही बिना किसी जान पहचान के,
अब रोज़ बदलते पानी वाला समंदर
कैसे पहचान पाएगा मुझे,
कैसे उम्मीद करू उससे
कि वो कहे –
“अच्छा है तू आ गयी
बहुत सी बातें बतानी हैं तझे। “
__ प्रीति दक्ष

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।

4 thoughts on “जान पहचान

  • Man Mohan Kumar Arya

    ईश्वर का एक नाम कवि भी है। यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के आठवे मंत्र में ईश्वर को कवि अर्थात क्रांतदर्शी कहा गया है। आपने अपनी कविता में जड़ पदार्थ जल को शब्द दे कर चेतन बना दिया है। हार्दिक धन्यवाद।

    • प्रीति दक्ष

      aapka gyaan abhimantrit kar deta hai .. sadhuwaad aapka .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • प्रीति दक्ष

      shukriya vijay ji

Comments are closed.