जेठ की दुपहरी
जेठ की धूप सही नहीं जाती |
चैन न मिलता भरी दुपहरी |
गर्मी से ब्याकुल जड़ -चेतन |
ठंढी छाव को तरसते सभी |
सूरज की किरणे भी ,
लगे आग बरसाने |
पेड़ की झुकी डाली भी ,
लगे गर्म हवा बहाने |
धरती भी अब तप्त हो चली |
पशु – पक्षी भी बेचैन हो गए |
नदी का पानी अब सुख चले |
अब चारो तरफ हाहाकार मची |
— निवेदिता चतुर्वेदी
जेठ की दुपहरी सच्च में दुखदायी है।
धूप में बहुत बुरा हाल होता है , बिलकुल सही बात है .
dhanybad
बहुत खूब !
dhanybad sri man jee