कवितापद्य साहित्य

जेठ की दुपहरी

जेठ की धूप सही नहीं जाती |

चैन न मिलता भरी दुपहरी |

गर्मी से ब्याकुल जड़ -चेतन |

ठंढी छाव को तरसते सभी |

सूरज की किरणे भी ,

लगे आग बरसाने |

पेड़ की झुकी डाली भी ,

लगे गर्म हवा बहाने |

धरती भी अब तप्त हो चली |

पशु – पक्षी भी बेचैन हो गए |

नदी का पानी अब सुख चले |

अब चारो तरफ हाहाकार मची |

निवेदिता  चतुर्वेदी 

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

5 thoughts on “जेठ की दुपहरी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    धूप में बहुत बुरा हाल होता है , बिलकुल सही बात है .

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      dhanybad

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      dhanybad sri man jee

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