कहानी

दरमियाँ

रघु तेजी से गाडी चलाते हुए पहाडगंज इलाके की भीड़ भाड से निकलना चाहता था मगर न जाने कैसे बचते बचाते भी उसकी सफ़ेद गाडी एक नीले रंग की गाड़ी से टकरा गयी! दोनों चालकों ने गाडी रोक शीशे के बाहर गर्दन निकाल कर देखा तो मानो जैसे कोई तेज़ बिजली का झटका सा लगा! दोनों ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतने साल बाद इस तरह एक दूसरे को दोवारा देख पायेंगे! दूसरी गाडी तेजी से आगे निकल गयी और रघु सोचता रह गया! तनु, हाँ ये मेरी ही तनु तो है मगर उसने देखकर भी अनदेखा क्यूँ किया मुझे? यही सवाल रह रहकर उसके दिल और दिमाग में उमड़ घुमड़ रहा था इन्ही ख्यालों में डूबते उतरते न जाने कब घर आ गया! जवाब भी उसका दिल उसे कोसते हुए खुद ही दे रहा था “क्यों न करे वो तुम्हे अनदेखा! उसकी हर कोशिश हर मेहनत हर त्याग के वावजूद तुम उसे कामचोर और स्वार्थी औरत की उपाधि से विभूषित करते थे न? उसके जाने के बाद समझ आया न बच्चू कौन स्वार्थी और कामचोर था! अरे पजेसिव और शक्की आदमी अपनी पत्नी को वश में रखने के लिए तुम उसकी नौकरी छुड़वाना चाहते थे घर तो मात्र एक बहाना था! जीना हराम करके रख दिया था तुमने उसका! और जब वह चली गयी तो तुम उसे वापस पाना चाहते हो!

रघु घर की सारी फोटो एल्बम लेकर बैठ गया और हर फोटो से जुडी बेशकीमती याद को याद करते हुए जाने कब आंसू उसकी आँखों की कैद से आजाद हो गालों पर ढुलकने की गुस्ताखी कर गए उसे पता ही नहीं चल सका! तनु की एक अदा से मुस्कुराती फोटो को सीने से लगा उसके होंठ बुदबुदा रहे थे “मैं तुम्हे दोवारा देखने की आस खो चुका था तनु, मगर जब किस्मत ने दोवारा तुमसे मुलाकात करवाई है तो मन चाहता है कि तुम्हारी गोद में सिर रखकर जी भर रो लूं और गिडगिडा के कहूँ वापस आ जाओ मेरी जिन्दगी में तनु, तुम्हारे बिना जिया नहीं जाता! जिन्दगी मौत से भी बदतर लगने लगी है! मैं अब वादा करता हूँ कि कभी तुम्हे बुरा भला नहीं कहूँगा, मेरी वजह से कभी तुम्हारे दिल को ठेस नहीं पहुंचेगी! बस एक बार तनु बस एक बार, सारे गिले शिकवे भुलाकर लौट आओ इस मकान को घर बनाने, इस रघु नाम के पुतले को इंसान बनाने! तनु ये सिर्फ तुम ही कर सकती हो क्योंकि ये दिल सिर्फ तुम्हे ही चाहता है और तुम्हारे लिए ही धड़कता है!

घंटों तनु की फोटो सीने से लगाए रघु जी भर के रोया! मानो वर्षों का सीने में जमा अहंकार और अकड का मैल आँखों के जरिये बहाकर अपने मन को शांत और शीतल मन्दिर सा पवित्र बना इस मन्दिर की देवी को पुन: मंदिर में प्रतिस्थापित करने की तैयारी कर रहा हो! खूब रो चुकने के बाद रघु को याद आया कि जबसे तनु उसकी जिन्दगी से गयी है वह कनाट प्लेस नहीं गया है! उसे अपनी तनु के पसंदीदा स्ट्रीट फ़ूड के ठेले याद आने लगे, जहाँ वह और तनु कभी एक दूसरे का हाथ थामे कभी कमर में हाथ डाले तफरीह किया करते थे! सोचते ही उसके उदास चेहरे पर ऐसे मुस्कराहट खिली जैसे सर्दी की हाड कंपाती कडकडाती ठंडक में गुनगुनी धूप की लकीर खिंच गयी हो!

इतवार का दिन! ये वही इतवार है जिसका तनु और रघु को शादी से पहले और शादी के शुरूआती एक दो वर्ष तक बड़ी ही बेताबी से इंतज़ार रहता था! यही तो वह दिन होता था जब तनु और रघु सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे के साथ होते थे! एक दूसरे के लिए होते थे! बाकी के छः दिन तो दफ्तर और परिवार के साथ जिम्मेदारियों का निर्वाह करते निकलता था! कितने सुहाने दिन थे वो जब दोनों प्रेम के पंक्षी एक दू सरे का हाथ थाम यहाँ वहां उड़ते फिरते थे! कनाट प्लेस उनका पसंदीदा तफरीह स्थल था! और जब एकांत की जरूरत महसूस होती तो बुद्धा गार्डेन या इन्द्रप्रस्थ गार्डन उन्हें जन्नत नज़र आते! बुद्धा गार्डन उन्हे स्वर्ग इसलिए भी लगता क्योंकि वहां उनके जैसे कई देवता और अप्सराएं भी वहां भोग विलास में रत होते थे! और ये तो सब जानते हैं कि देवताओं में कितनी अच्छी अंडरस्टेंडिंग होती है, बचपन में देवताओं और राक्षसों की लड्डूभोज गाथा सबने पढ़ी है!

कुछ मामलों में दोनों की पसंद अलग थी जैसे कि तनु को स्ट्रीट फ़ूड और रघु को होटल का हाइजीनिक फ़ूड सुहाता था! रघु शुरू शरू में स्ट्रीट फ़ूड के नाम से मुंह बिचकाता मगर तनु कि ख़ुशी और मुस्कराहट के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता! हो भी क्यूँ न? प्रेमी तो चाँद तारे भी तोड़ लाते हैं उसकी भोली भाली तनु तो सिर्फ उसे स्ट्रीट फ़ूड ही खिला रही है! और यही सोच उसने बेमन से ही सही स्ट्रीट फ़ूड को अपनी पसंद बना लिया! उधर तनु भी रघु के लिए अपना समर्पण और प्रेम जताने का मौका कहाँ चूकती! पेट भर गोलगप्पे और भल्ले खाने के बाद जिद करती –“रघु और भूख लगी है! चलो अपनी पसंद के किसी रेस्तरां में खाना खिलाओ ”दो साल की डेटिंग और चेटिंग विद ईटिंग के बाद जब महसूस हुआ कि अब एक दू सरे के बिना दिन काटना और राते गुजारना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता जा रहा है!

अपनी आधी तनख्वाह खर्च कर रघु ने एक फाइव स्टार होटल में डिनर का इंतजाम किया! तनु बेहद खुश थी एकदम फिल्मों की तरह बैरा शैम्पेन के दो गिलास रख गया! दोनों ने इससे पहले कभी शराब को नहीं चखा था! तनु”रघु इडियट ये क्या है! इतना महंगा क्यूँ मंगाया? कौन पिएगा इसे? ”रघु “तुम पियोगी और कौन? ”तनु (तुनक कर) पागल हो क्या, मुझे घर भी जाना है “ रघु –और मुझे तुम्हें घर पर लाना है “तनु (आश्चर्य से ) क्या? रघु –“पहले इसे टेस्ट तो करो, फिर अपना गिलास उसके गिलास से टकराकर चीयर्स कहा! ”दोनों ने ही बुरा सा मुंह बनाते हुए गिलास को एक झटके में खाली कर दिया! तनु को ऐसा लगा जैसे कि उसके मुंह में कोई धातु कि वस्तु आ गयी हो! उसने वस्तु हाथ पर उगली तो वह भोचक्की रह गयी! वह एक डायमंड रिंग थी! तनु इस वक्त खुदको एक राजकुमारी की तरह महसूस कर रही थी और रघु उसे सपनो का राजकुमार नजर आ रहा था! एक रोमांचक थिरकन उसके तन मन को गुदगुदा रही थी! जाने यह शेम्पेन का असर था या रघु की दीवानगी का उसे चारो तरफ धुआ धुँआ नज़र आ रहा था और उसमे उसे कोई नहीं सिर्फ वह और रघु ही दिखाई दे रहे थे!

रघु की आवाज़ से उसकी तन्द्रा टूटी रघु घुटनों के बल बैठा अपना हाथ फैलाए उसे “बिल यू मैरी मी “ कह रहा था! तनु ने मुस्कुराते हुए अपनी पलकें झुका उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया! दोनों वहां से हाथों में हाथ डाल डिस्को थिक निकल गए! और पूरी रात रूमानी गानों पर थिरकते रहे! रात बीती शेम्पेन के गिलास का असर भी उतरा मगर सुरूर रूमानियत का तवियत से दोनों पर चढ़ा हुआ था! जब दोनों के ही घरवालों ने रात का हिसाब माँगा तो बात निकल ही गयी मुंह से कि अब एक दू सरे के बिना जीना मुश्किल है! अगर शादी करेंगे तो एक दू सरे से ही करेंगे नहीं तो कोर्ट मेरिज कर लेंगे! दोनों के तेवर के आगे घरबालों को झुकना पड़ा और कैद हो गए दो आजाद पंक्षी एक ही पिंजरे में! शुरू शुरू में तो दोनों ये तेरा घर ये मेरा घर हमारा घर ये प्यारा घर की तर्ज पर एक दू सरे का हाथ बंटाते घर सजाने संभालने में लगे रहते! तनु कि सेपरेटर में बनाए दाल और चावल जब मिक्स होकर खिचड़ी बन जाते तो भी रघु को बड़े ही स्वाद लगते! इतवार की तफरीह वदस्तूर जारी थी!

मगर एक वर्ष बीतते बीतते ये तेरा घर ये मेरा घर के स्थान पर ये तेरी जिम्मेदारी ये भी तेरी जिम्मेदारी और मैं लाचार देख मेरी लाचारी उनके दरमियाँ आने लगी! और जब जिम्मेदारियां और लाचारी दरमियाँ आती हैं तो प्रेम दबे पाँव प्रेमी जोड़े की जिन्दगी से कब निकल जाता है उन बेचारों को खुद पता नहीं चलता! और जब रघु बात बात पर उसे अच्छी पत्नी बनने की नसीहत देने और नौकरी छोड़ घर संभालने का दबाब बनाने लगा! और तनु को ये शादी जल्द्वाजी में लिया गया निर्णय लगने लगी! तो अंत में दिल कड़ा करके भावनाओं पर शिकंजा कस छोड़ आई वो अपने प्यार और प्यारे घर को हमेशा के लिए! जाते वक्त सोच रही थी कि रघु को उसकी गलती का अहसास होगा वह उसे रोकेगा मगर जब जलते हुए नेत्रों से देखते हुए रघु ने उसे कहा कि “सही निर्णय लिया है तुमने अब भूलकर भी वापस इस घर में मत आना “ तब उसका दिल और सब्र का बाँध दोनों ही बुरी तरह टूट गया! इस बीच तनु डिप्रेशन में चली जा रही थी! उसके माता पिता ने उसका तबादला बेंगलोर करवा दिया! जिससे कि वह अतीत की कडवी यादों को भुलाकर नए सिरे से जिन्दगी शुरू कर सके! उधर रघु जो दिनभर तनु को साफ़ सफाई और व्यवस्थित घर की सीख देकर उसे अच्छी गृहणी के कर्तव्य समझाया करता था! आज खुद ही अस्त व्यस्त जिन्दगी और कपड़ों में घूमने लगा! कोई मित्र घर आता तो उसके मुंह से बस यही निकलता “ये क्या हाल बना रखा है यार? ”

रघु के कदम खुद व् खुद दिल्ली चाट भण्डार की तरफ चले जा रहे थे! दिमाग में पुरानी यादे, सुहाने लम्हे एक ठंडी बयार की तरह उसे सुकून दे रहे थे! उसने यहाँ वहां देखा मगर तनु कहीं नहीं दिखाई दी! वो थोडा मायूस जरूर हुआ मगर उसका दिल कह रहा था तनु इतने वर्ष बाद इस शहर में आई है तो अपने जीवन के ख़ास पलों को याद करने यहाँ जरूर आएगी! उसने दही भल्ले का आर्डर दिया, और यहाँ वहां का जायजा लेने लगा, वक्त के साथ यह स्थान भी कितना बदल गया है पहले यही दिल्ली चाट वाला एक बड़ा सा ठेला लगाता था और आज रेस्तरा जैसी दुकान बना ली! वह यही सब सोचने में लगा था कि चाट वाली प्लेट उसकी मेज पर आ गयी! उसने एक चम्मच मुंह में डाली ही थी कि जैसा उसका दिल कह रहा था सामने से वही नीली गाडी आती दिखाई दी और उसमे से उसकी जिन्दगी बाहर उतरी ! रघु अपना भल्ला वहीं छोड़ बाहर की तरफ दौड़ा! उधर से तनु अन्दर आ रही थी दोनों लगभग टकराने ही वाले थे मगर बाल बराबर दूरी पर रघु ने अपने अनियंत्रित क़दमों को ब्रेक दी! तनु की आँखों में आश्चर्य नहीं था, शायद वो भी दिल में जानती थी कि उसका रघु यहाँ उससे मिलने जरूर आएगा!

दोनों ने एक दूसरे को देखा औपचारिकता वश हेलो कहना चाह रहे थे मगर जुबान शायद तालू से चिपक गयी थी! बुत बने दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे मरने वाला व्यक्ति अपने अंतिम समय अपने किसी प्रिय की मूरत आँखों में कैद कर अपने साथ ले जाने की कोशिश करता है! पीछे से किसी की व्यंग्य भरी आवाज सुनाई दी आपका हो गया हो तो कृपया साइड दे दीजिये! दोनों हडबडा कर एक तरफ हो गए! रघु –“आओ उधर बैठते हैं तनु “तनु एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी मेज की तरफ बढ़ गयी! जाने किस अधिकार से रघु यह कह पाया और जाने किस रिश्ते से तनु ने उसकी बात मानी यह तो वही जाने जो मिटटी के जिस्म में कांच सा दिल लगाकर हम मनुष्यों को इस धरती पर भेजता है! मेज के आमने सामने बैठ दोनों एक दूसरे को फिर से ताकने लगे! तनु को अपलक निहारते रघु मन ही मन सोच रहा था! ”इतने वर्षों बाद किस्मत ने फिर मिलाया है तनु, तो मन कहता है कि भूल जाएँ वो सारे गिले शिकवे जो कभी हमारे दरमियाँ चीन की दीवार की तरह मजबूती से खड़े हो गए थे, इतनी मजबूती से की चाहकर भी हम न ये अहम् रुपी दीवार तोड़ पा रहे थे और न ही इसके इर्द गिर्द झाँक एक दूसरे को देखना संभव हो पा रहा था! मन तो बहुत हो रहा था तनु तुम्हें देखूं और पूछूं कैसी हो तनु? मगर तनु हम जो पुरुष हैं न, अपने सीने में उमड़ते प्यार के सागर को रोकने में न जाने क्यूँ जी जान लगा देते हैं, अगर इतनी कोशिशें हम अपने अहम् की दीवार को तोड़ने में लगाए तो दुनिया में कभी भी दो प्यार करने वाले दिल छोटी छोटी बातों में उलझ एक दूसरे से कभी अलग ना हों, हमारी तरह !

तनु ने (ख़ामोशी तोड़ते हुए) – तुम्हे कैसे पता चला कि मैं यहाँ आउंगी?

रघु (अचकचाते हुए ) मेरा दिल कह रहा था तनु! तुम हमारे प्यार की यादें ताजा करने जरूर आओगी!

तनु – प्यार रघु?

रघु (उसकी आँखे पढने की कोशिश करते)- क्या तुम भूल गयी वो मुलाकातें वो हंसी, ख़ुशी और मस्ती ये कनाट प्लेस हमारे उस प्यार का आज भी गवाह है तनु!

तनु- वक्त के साथ कनाट प्लेस भी कितना बदल गया है न रघु? बिलकुल हमारे उस प्यार की तरह!

रघु –सच्चा प्यार कभी नहीं बदलता तनु, मैं कल भी तुमसे बेइन्तहा प्यार करता था, करता हूँ और जब तक जिऊँगा तबतक करता रहूँगा!

तनु –(आँखों से झलके आंसू चोरी छिपे पोंछते हुए ) वही बेइन्तहा प्यार न रघु? जिसने तुमसे यह कहलवाया कि मेरे घर में वापस लौटकर मत आना?

रघु –तुमने जॉब क्यूँ नहीं छोड़ी तनु? तुम्हारी जॉब ही हमारे दरमियाँ दूरीयां लेकर आई! तुम्हे अपनी नौकरी मुझसे भी ज्यादा अजीज क्यूँ थी तनु? मैं अच्छा भला तो कमा रहा था! अगर किसी चीज़ की कमी या जरूरत महसूस हो रही थी तो मुझसे कहती मैं तुम्हें दुनिया की हर ख़ुशी लाकर देता!

तनु – हर ख़ुशी देने की बात करते हो, मेरी ख़ुशी मेरी आत्मनिर्भरता में थी रघु! तुमने तो ख़ुशी देने के बजाय मेरी अपनी खुशियाँ, मेरे सपने मुझसे छीनने की हर संभव कोशिश की थी!

रघु – उफ्फ तनु, तुम्हारे वही सपने तो हमारे रिश्ते के दरमियाँ, एक कभी न पटने वाली खाई का निर्माण कर रहे थे! मगर तुम उस खाई को देख ही नहीं पा रही थी!

तनु –रघु मेरे सपने हमारे रिश्ते के दरमियाँ नहीं बरन तुम्हारी ईर्ष्या, असुरक्षा और अहम् हमारे रिश्ते के दरमियाँ आये थे! (कहकर तनु उठने लगी )

रघु –कहाँ जा रही हो?

तनु –जहाँ से आई थी! आज ही वापस जा रही हूँ, दो घंटे बाद फ्लाईट है!

रघु –अपना फ़ोन नंबर नहीं दोगी?

तनु ने इनकार में सिर हिलाया!

रघु –(भीगी भीगी सी आवाज में बोला )-वापस आ जाओ तनु

तनु अपने मुंह में रुमाल रख अपने फूटती रुलाई छिपाते तेजी से बाहर निकल गयी!

— सपना मांगलिक

सपना मांगलिक

नाम – सपना मांगलिक जन्मतिथि -17/02/1981 जन्मस्थान –भरतपुर वर्तमान निवास- आगरा(यू.पी) शिक्षा- एम्.ए, बी.एड (डिप्लोमा एक्सपोर्ट मेनेजमेंट ) सम्प्रति– उपसम्पादिका- आगमन साहित्य पत्रिका, इन दिनों documentry निर्माण में सक्रिय, स्वतंत्र लेखन, मंचीय कविता, ब्लॉगर, फेसबुक पर काव्य-सपना नाम से प्रसिद्द ग्रुप जिसके देश विदेश के लगभग पांच हज़ार सदस्य है . संस्थापक– जीवन सारांश समाज सेवा समिति, शब्द-सारांश (साहित्य एवं पत्रकारिता को समर्पित संस्था) सदस्य- ऑथर गिल्ड ऑफ़ इंडिया, अखिल भारतीय गंगा समिति जलगांव,महानगर लेखिका समिति आगरा, साहित्य साधिका समिति आगरा,सामानांतर साहित्य समिति आगरा, आगमन साहित्य परिषद् हापुड़, इंटेलिजेंस मिडिया एसोशिसन दिल्ली, गूगनराम सोसाइटी भिवानी, ज्ञानोदय साहित्य परिषद् बेंगलोर प्रकाशित कृति- (तेरह) पापा कब आओगे, नौकी बहू (कहानी संग्रह), सफलता रास्तों से मंजिल तक, ढाई आखर प्रेम का (प्रेरक गद्य संग्रह), कमसिन बाला, कल क्या होगा, बगावत (काव्य संग्रह), जज्बा-ए-दिल भाग–प्रथम, द्वितीय, तृतीय (ग़ज़ल संग्रह), टिमटिम तारे, गुनगुनाते अक्षर, होटल जंगल ट्रीट (बाल साहित्य) संपादन – तुम को ना भूल पायेंगे (संस्मरण संग्रह), स्वर्ण जयंती स्मारिका (समानांतर साहित्य संस्थान) प्रकाशनाधीन– इस पल को जी लें (प्रेरक संग्रह), एक ख्वाब तो तबियत से देखो यारो (प्रेरक संग्रह) विशेष– आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर निरंतर रचनाओं का प्रकाशन सम्मान- विभिन्न राजकीय एवं प्रादेशिक मंचों से सम्मानित पता- एफ-659, बिजलीघर के निकट, कमला नगर, आगरा 282005 (उ.प्र.) दूरभाष – 09548509508,7599163711, [email protected]

7 thoughts on “दरमियाँ

  • प्रीति दक्ष

    sapna bahot sundar likha hai yadi is kahani ka ant sukhant hota to anyaay hota ..

    • विजय कुमार सिंघल

      अन्याय किसके साथ और क्यों होता?

      • प्रीति दक्ष

        विजय जी

        हर कहानी का अंत सुखद हो ये ज़रूरी तो नहीं जिस रिश्ते में प्यार से ऊपर अहं ईर्ष्या और जलन आ जाए वो रिश्ता नहीं निभता।

        रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए

        जोड़े से ना जुड़े जुड़े गाँठ पड़ जाए।

        अन्याय प्रेम के साथ होता विजय जी। जिसे पति ने ज्यादा आघात पहुचाया।

        • विजय कुमार सिंघल

          ठीक है. लेकिन जब पति अपनी गलती मान रहा था और अपने प्रेम को व्यक्त कर रहा था, तो क्या उसको एक बार माफ़ नहीं किया जाना चाहिए था?

          • प्रीति दक्ष

            usne apni galti kahan maani vijay ji ? kya usne kaha ki tum jaisi ho waisi hi meri zindagi me wapas aajao tanu. mae tumhen har roop mr sweekaarta hoon.
            .

          • विजय कुमार सिंघल

            हां यह बात तो है। उसने स्पष्ट शब्दों में अपनी ग़लती नहीं मानी थी। अगर मान लेता तो क्या वह वापस आ जाती?

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी.
    लेकिन यह दुखांत है, अगर सुखांत होती, तो शायद अधिक अच्छी रहती. पर लेखक को इतना विशेषाधिकार तो होता ही है कि अपनी इच्छा से कहानी का अंत कर सके.

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