कथा साहित्य

शब्द का स्वरूप

हमारी संस्कृति के मूल मे शब्द निहित है , उस शब्द का प्रयोग हम कैसे करते हैं , यह हमारे आचार – विचार , ग्यान , संस्कार और विवेक पर निर्भर करता है , समय के जाल [समय चक्र] मे सदैव शब्द ने अपने विविध रूप धारण किया है , रचनाकर के नजरिये का तारतम्य मे शब्द भारतीय संस्कृति मे विविध रूपों मे निखार लाया है ,,,शब्द जीवन  का मूल है , जो ब्रह्माण्ड मे झंकृत होता है ,
बालक जब धरती पर जन्म लेता है उसका रुदन और प्रेम का भाव  माँ होता है , शिव डमरू की आवाज व्याकरण का मूल बन जाता है शब्द संविधान है ,
लेखक् न्यायपालिका  के न्यायाधीश के समान है ,  शब्दों की मीमांशा का यथार्त वर्णन करता है ,जज का काम संविधान के अनुरूप विवेचना करना और न्याय करना है ,
लेखक का काम रवि की तीक्ष्ण रश्मियों की आभा से बचे हुये संसार को भी प्रकाशवान करना है , समाज को नयी दिशा देना है , अंधविश्वास उन्मूलन , मानवता और यथार्त का बोध करना है , लेखक बदलते हुये वक्त की तस्वीर है, और शब्द आयना है जो यथार्त का बोध करता है ,
कवि   [रचनाकार]की नजर उस स्थान को खोज लेती है जो शून्य मे समाहित हो चुका है ,,,उनके सोचने का नजरिया लीक से हटकर होते है , उनकी विशिष्ट विशेषता जन मानस को स्‍वत ; ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है , ऐतिहासिक और राजनैतिक परिदृश्य पर गौर करें तो हर शब्द आयने की तरह सॉफ नजर आता है ,, शब्द रूपी आईना वह मित्र है जो आपको कभी भी धोखा नही दे सकता ,
जीवन का मूल आधार शब्द है ,

शब्द शिव है ,
शब्द आनादि है
शब्द अनन्त है ,
शब्द ब्रह्म है ,
शब्द जीव है ,
शब्द चराचर मे व्याप्त है ,
शब्द मंत्र है ,
मन्त्रों के मूल मे मा गायत्री हैं,
शब्द रावण है ,
वही शब्द राम हैं,
शब्द की  महिमा अपरम्पार है ,
शब्द श्री है ,शब्द राधा कृष्ण है

शब्द वह साँचा है जो ग्यान और विग्यान का वृहद वर्णन करता है ,
शब्द शब्द ज्ञान की वह भूधराकार शृंखला है जो आनादि और अनन्त है , उसके आवरण मे रवि को छुने की सामर्थ्य और जूनून है , विंध्य पर्वत  अपने विकाश के चरमोत्कर्ष था उसे कुम्भज़ ऋषि ने समय के शब्द मे बाँध दिया , समय -समय पर शब्द के रूप बदलते रहे हैं ,,, कभी ब्रहमा के कमण्डल से निकली हुई गंगा , शिव की जटा मे भटकती हुई गंगा भागीरथ के पीछे -पीछे चलने वाली गंगा अहम् को बोध करती हुई गंगाजी जंह्व ऋषि के आश्राम को तहस-नहस कर जलमग्न कर देती है , ऋषि क्रोध की पराकाष्ठा मे गंगा जी के समस्त जल को पी गये , भागीरथ के अनुनय से ऋषिवर गंगा जी को मुक्त किया तभी से माँ गंगा जान्हवी के रूप मे जगविदित हुई ,,,, माँ शारदा की कृपा दृष्टि की अनुपम छटा शब्द है , नारद की वीणा की झंकार परम् शब्द है , भोले शिव के डमरू से निकला शब्द पाणीं न का व्याकरण बन जाता है ,,,,,

हे शब्द तेरे अनन्त रूप , रूप रूप मे अनूप ,

भाव अरू विभाव मे प्रेम के संभाव मे ,

रस के संसार मे भाव के प्रवाह मे ,

छन्द के उपबंध मे लसा हुआ तरन्ग मे ,

अलंकृत शब्दों की महिमा ,साहित्य के संसार मे ,,

हे शब्द तेरे अनन्त रूप , रूप रूप मे अनूप ,

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “शब्द का स्वरूप

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख.

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय सादर नमन एवम् आभार

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