कविता

बाकी अभी उजाला है

बाकी अभी उजाला है

 

दिन कहता

है करो जतन कुछ

दिनकर ढलने वाला है।

 

जीवन को मत जंग लगाओ

बीती भोर नहीं फिर आती

ज्योति-कलश बन, जाएँगे पल

बस बालो मन-बल की बाती

 

साथ रखो

कर्मों की चाबी

अगर भाग्य पर ताला है।

 

गम आए यदि गला घोंटने

हिम्मत का दिखलाओ अंकुश

अगर डराए बदला मौसम

करो धैर्य-शर से अपने वश

 

बीज निवालों

के बो दो यदि

रूठा एक निवाला है।

 

जलधि पार मंज़िल है माना

मगर ज़रूरी हासिल करना

लहरें आँख दिखाएँ भी तो

आँख मिला उन पर पग धरना

 

नाव खोल

तिरपाल तान लो,

बाकी अभी उजाला है।

 

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

One thought on “बाकी अभी उजाला है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर गीत !

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