मेरे पापा
माँ की कोख में भी तुमको
पापा मैं सुन पाता था
मेरे लिए वो फ़िक्र तुम्हारी
सुनके मैं इठलाता था
गर्भ में माँ के साथ साथ मैं
ह्रदय तुम्हारे पलता था
मुझको ही तो सोच तुम्हारा
एक – एक पल गुजरता था
खेल खिलौने , बस्ता और कॉपी
पिज़्ज़ा बर्गर , चिप्स और टॉफी
तुमसे ही सारे ऐश हैं पापा
मौज मस्ती जीवन की सारी
तुमसे ही तो कैश है पापा
बहा खून पसीना भरी दुपहरी
मेरे लिए ही कमाते हो
मम्मी बचाती बुरी नज़र से
तुम नज़रों में लाते हो
माँ लाती दुनिया में बेशक
दुनियादारी तुम सिखलाते
मम्मी तो प्यारी है ही पापा
तुम भी मुझको बहुत लुभाते
डांट और सख्ती से तुम्हारी
होते कदम मजबूत हमारे
तुम्हारे काँधे पर ही तो चढ़
तोड़ लाते हम नभ के तारे
माँ को पूजे दुनिया सारी
पर पापा भी तो महान हैं
उनके समर्पण और त्याग से
हम रहते क्यूँ अनजान हैं ?
रक्षा करते ,पालन करते
पापा तुम भगवान हो
जिस दिल में बसती है माँ
पापा उसके तुम प्राण हो
— सपना मांगलिक
सपना जी , माँ को लिखी कवितायेँ तो बहुत पड़ीं लेकिन पहली दफा आप ने एक पिता को सन्मान दिया है , आप के जज्बे को सलाम .
बहुत अच्छी कविता !