कविता

कविता

मेरा दर्द
पल पल बढ़ती
दीवार पर चढी
उस बेल की तरह है
जो हर बार
आकाश छूने की
कोशिश में
लुढ़क जाती है
जमीन पर
मेरा दर्द
सीने में कील की तरह
चुभता है इतनी
गहराई से कि मैं
चिल्ला भी नहीं सकती
मेरा दर्द
जब तक कमरें में
खामोश सा
फ़र्श पर पड़ा रहेगा
तब तक शांति की
कालीन बिछी रहेगी
दर्द खामोश रहेगा
कालीन उठते ही
मेरा दर्द
चीखने चिल्लाने लगेगा
मेरा दर्द
अपने अश्कों से
ना मालूम कितने तूफ़ान
लाएगा जब होगा
इस दर्द से सामना
समस्त संसार का

…….सरिता दास

2 thoughts on “कविता

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता .

  • विजय कुमार सिंघल

    उत्तम कविता !

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