राजनीति

अराजकतावादी केजरीवाल

केजरीवाल ने जब अपनी ही पार्टी के संस्थापक सदस्यों, योगेन्द्र यादव और प्रशान्त भूषण को पार्टी से निष्कासित किया, तो लोगों ने उन्हें तानाशाह (डिक्टेटर) कहा। जब केजरीवाल ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई, तो लोगों ने उन्हें रिवोल्युशनरी कहा। जब केजरीवाल ४९ दिनों तक सरकार चलाकर भाग खड़े हुए, तो लोगों ने उन्हें भगोड़ा कहा। जब उन्होंने वाराणसी संसदीय क्षेत्र से नरेन्द्र मोदी को ललकारा तो लोगों ने उन्हें फाइटर कहा। लेकिन वास्तव में उपरोक्त विशेषण में से कोई उनपर फिट नहीं बैठता है। सत्य यह है कि वे एक जन्मजात अराजकतावादी (Anarchist) हैं। उन्हें लड़ने के लिए हमेशा एक लक्ष्य (Target) चाहिए। सुशासन (Good governance) से उनका कोई लेना-देना नहीं।

दिल्ली में मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के बीच चल रही जंग के मूल में वर्तमान मुख्य सचिव शकुन्तला गैमलिन की अस्थाई नियुक्ति का मामला है। शकुन्तला दिल्ली की वरिष्ठतम आई.ए.एस. अधिकारी हैं और उनपर भ्रष्टाचार या अनियमितता की कोई जांच भी नहीं चल रही है; पूर्व में भी कोई जांच नहीं चली है। ऐसे में उनकी वरिष्ठता को नज़रअन्दाज़ करते हुए एक कनिष्ठ का नाम जिसपर राष्ट्रमंडल खेल घोटाले का आरोप है, मुख्य सचिव के लिए संस्तुति (Recommend) करना कही से भी उचित नहीं था। उप राज्यपाल ने शकुन्तला के साथ न्याय किया और उन्हें कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया। सरकारी नियमों के अनुसार फ़ाईल पर अनुमोदन सक्षम अधिकारी देता है लेकिन औपचारिक आदेश प्रधान सचिव या नियुक्ति सचिव द्वारा जारी किया जाता है। उप राज्यपाल के अनुमोदन के पश्चात शकुन्तला की तदर्थ नियुक्ति का आदेश जारी करना प्रधान सचिव  (Principal Secretary) की बाध्यता थी। मज़ुमदार ने वह आदेश जारी कर दिया। नाराज़ केजरीवाल ने मज़ुमदार को प्रधान सचिव के पद से हटा दिया। उप राज्यपाल ने मुख्यमंत्री का आदेश निरस्त करते हुए मज़ुमदार को पुनः प्रधान सचिव नियुक्त कर दिया। केजरीवाल ने तमाम शिष्टाचार को तिलांजलि देते हुए मज़ुमदार के कमरे पर ताला जड़वा दिया।

लगभग एक साल पहले गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नरेन्द्र मोदी को दी गई विदाई का दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम जाता है। विदाई समारोह में शामिल अधिकांश अधिकारियों की आंखें गीली थीं। कुछ तो फफक-फफक कर रो रहे थे। मोदी ने उन्हीं आई.ए.एस. अधिकारियों के साथ काम किया और गुजरात को विकास के शिखर पर पहुंचाया। Good governance का यह एक अनुपम उदाहरण है। केजरीवाल ने दिल्ली के उप राज्यपाल और केन्द्र सरकार के खिलाफ़ जंग छेड़ने के बाद अब आई.ए.एस. अधिकारियों के खिलाफ़ मोर्चा खोला है। अधिकारियों को नियम के अनुसार सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने का अधिकार नहीं होता लेकिन व्यवस्था के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए मुख्यमंत्री को जनसभा में कुछ भी बोलने का अधिकार होता है। केजरीवाल ने इस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए एक जनसभा में मुख्य सचिव शकुन्तला गैमलिन को भ्रष्ट बताते हुए जनता से प्रश्न पूछा – “क्या आप इस भ्रष्ट महिला को स्वीकार करेंगे?”

यह एक महिला और ब्युरोक्रेसी का अपमान है। केजरीवाल अपने चुनावी वादों को कभी भी पूरा नहीं कर सकते। मुफ़्तखोरी का सपना एक या दो बार दिखाया जा सकता है। वे इसे भलीभांति जानते हैं। वे उप राज्यपाल, केन्द्र सरकार और दिल्ली के अधिकारियों से जंग छेड़कर Anarchism का ऐसा माहौल उत्पन्न करना चाहते हैं कि केन्द्र सरकार उनकी सरकार को बर्खास्त कर दे और वे शहीद का दर्ज़ा पा जायें। उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। सुशासन दे पाना उनके वश में नहीं है। आगे जो भी घटनाक्रम सामने आये, नुकसान तो दिल्ली की जनता का ही होना है।

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

One thought on “अराजकतावादी केजरीवाल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख. केजरीवाल की इन हरकतों के पीछे का मंतव्य स्पष्ट है. वे अपने वायदों को पूर नहीं कर पा रहे हैं, ऐसा उन्होंने स्वयं स्पष्ट स्वीकार किया है कि इनमें से आधे भी पूरे करने असंभव है. अब उनको अपनी असफलता का दोष किसी के ऊपर डालने की जरुरत हो रही है. विधान सभा में विपक्ष लगभग शून्य है. इसलिए वे विपक्ष को दोषी ठहरा नहीं सकते. ले देकर एक उपराज्यपाल बचते हैं, जिनके ऊपर दोष डालकर वे बचने की आशा करते हैं.
    एक मंतव्य और भी हो सकता है कि संवैधानिक संकट उत्पन्न करके वे केंद्र सरकार जो बाध्य करना चाहते हैं कि उनकी सर्कार को बर्खास्त कर दें. अगर गलती से ऐसा हुआ तो वे शहीद बन जायेंगे और इस बात का प्रचार करेंगे कि भाजपा और मोदी जी ने उनको वायदे पूरे नहीं करने दिए.
    दिल्ली की जनता इतनी मूर्ख है कि अगर केजरीवाल और नया मुखौटा लगाकर नयी नौटंकी के साथ सामने आयेंगे तो जनता उनक वोट दे देगी. अगर कुछ कमी रह भी गयी तो अवैध बंगलादेशी वोटर हैं ही. वे घाटा पूरा कर देंगे.

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