कहानी : बदलते रिश्ते!
सुनंदा एक पढ़ी लिखी छोटे कद की साधारण नैन नक्श की लड़की थी अपनें माँ बाप की लाड़ली दो भाइयों में अकेली, होशियार इतनी कि सारा शहर सुनंदा के गुण गाते नहीं थकता । कढ़ाई चित्रकला गायन वादन नृत्य सभी में निपुण,इसीलिए सुनंदा की माँ को कभी उसके विवाह की चिंता नहीं हुई । संयोग से सुनंदा के लिए अच्छा लड़का मिल गया । लड़का बैंक में कार्यरत था तो माँ बाप ने कुछ और जानकारी करने की कोशिश ही नहीं की और अफरा तफरी में सुनंदा का विवाह हो गया ।सुनंदा का पति खुद शहर में रहता था लेकिन उसके भैया भाभी गाँव में रहते थे ।माँ बाप नहीं थे ,भाई भाभी ने हीं पाला था योगेन्द्र को ।
सुनंदा और उसके घर के लोग यही सोच रहे थे कि वह तो शहर में रहेगी शादी के बाद गाँव से उसे क्या मतलब ? मगर योगेन्द्र जब सुनंदा की विदा करा कर ले गया तो सुनंदा को उसने गाँव छोड़ दिया सुनंदा की बिल्कुल इच्छा नहीं थी मगर क्या करती किसी तरह गाँव के परिवेश में ढाला खुद को मगर उसे उपले बनाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता ,एक दिन कह दिया पति से कि वो ये नहीं कर पायेगी । इसी बात पर बात बढ़ गयी और गुस्से में उसे उसका पति उसके घर छोड़ गया उसकी भी जिद थी की जैसे ससुराल में रखेंगे वैसे ही रहना होगा !
माँ बाप को भी बुरा लगा और लड़की को विदा नहीं किया। ये कहते हुए की जब दिमाग ठिकाने पर हो तब ले जाना । इसी बीच सुनंदा माँ बन गयी एक बेटी को जन्म दिया सब ठीक ठाक चलता रहा किसी प्रकार से और बड़े भाई का भी विवाह हो गया ।समय गुजरता गया और दस साल गुजर गए हमेशा लोगों के बीच उसे लेकर बातें होती की दोनों पति पत्नी में सुलह हो गयी है वो बापस अपने घर जा रही है। माँ बाप अपनी पे अड़े थे और दमाद अपनी पे दोनों के बीच सुनंदा कभी एक छोर पर खड़ी दिखाई देती तो कभी दूसरे छोर पर, कई बार सिर्फ अहम् को पोषित करते रहने के किये भी इंसान ज़िन्दगी में सब कुछ खो देता है खासकर वहां जहां प्रेम नहीं होता वहाँ ये स्तिथि उत्पन्न होती है और संभलती इसलिए नहीं क्योंकि रिश्ते भावनाओं पर नहीं स्वार्थ पर टिके होते हैं इसलिए किसी भी पछ को किसी के दिल की चिंता नहीं होती और इन सब में मरता वो है जिसके पास दिल होता है दुनियां का कड़वा सच !
सुनंदा समझते हुए भी असमर्थ थी घर में अब उसके लिए वो बात नहीं थी कभी कभी अपने भी बोझ समझे जाते हैं अगर उनके पास कुछ देने को नहीं होता और सुनंदा के पास भी देने को कुछ नहीं था सुनंदा की लड़की भी कुपोषण का शिकार होती जा रही थी लड़की की बिगड़ती हालत सुनंदा से देखी न जाती तो नौकरी के लिए हाथ पैर मारे और एक स्कूल में पढ़ाने लगी कुछ पैसे आने लगे उसके हाथ में ।
सुनंदा घर से निकली तो घर से बात भी बाहर निकली कि उसका मायके में गुजारा नहीं चलता । घर में भाभी बात बात पे ताना देती माँ बाप भी कुछ नहीं कहते। सबको बड़ा आस्चर्य होता कि कैसे लोग हैं ।
आज सुनंदा स्कूल से कुछ परेशान सी लौटी घर पे देखा की उसकी लड़की को तेज बुखार है तो बिफर गयी की बेटी के सर पर किसी ने ठन्डे पानी की पट्टी तक न रखी दिखाना तो बहुत दूर की बात है बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गयी की सुनंदा घर छोड़ निकल पडी ……मगर कहाँ जाये निकल तो चली ?कौन है? कहाँ जाये अब ?
आज हिम्मत कर एक कदम आगे बढ़ाया और पति को फ़ोन कर सब बता दिया योगेन्द्र भी इन दस सालों में भैया भाभी का असली प्यार समझ चुका था जो की उन्हें उसकी तनख्वाह से था । आज दोनों हीं रुआंसे से अपने अपने को कोस रहे थे और बदलते रिश्तों के मायने ढूंढ रहे थे।
बहुत अच्छी कहानी !
यहाँ चाह , वहां राह