कविता

सांप सूघ गये हलक सूख गये

halak
हलक सूख गये सांप सूघ गये
जीवन बगिया हरि हर गये
गेहूं खडे आग झुलस गये
हलक सूख गये सांप सूघ गये
राह विरानी आंख निहारे
आधी दुनियां खाख हो गयी
सांप सूघ गये हलक सूख गये….

One thought on “सांप सूघ गये हलक सूख गये

  • विजय कुमार सिंघल

    पर्यावरण की त्रासदी को व्यक्त करती छोटी किन्तु महत्वपूर्ण कविता !

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