दो मुक्तक
आ मेरी ग़ज़ल तुझे प्यार दूं
नया साज दूं नया राग दूं
तुम बंसी मेरी बन जाओ
अपने स्वर तुम पर साध दूं
दिल ये मेरा अब तुम्हारा हो गया
जब से कश्चित इशारा हो गया
मैं भटकता राह में था दर-बदर
तुम मिले मुझको सहारा हो गया
— अरुण निषाद
आ मेरी ग़ज़ल तुझे प्यार दूं
नया साज दूं नया राग दूं
तुम बंसी मेरी बन जाओ
अपने स्वर तुम पर साध दूं
दिल ये मेरा अब तुम्हारा हो गया
जब से कश्चित इशारा हो गया
मैं भटकता राह में था दर-बदर
तुम मिले मुझको सहारा हो गया
— अरुण निषाद
Comments are closed.
dhanyawad sir ji…………..sadar pranam………….
बहुत अछे लगे .
अच्छे मुक्तक !