ग़ज़ल : एक मुक़द्दस रिश्ते के नाम
तू मसीहा है मेरा या कि फ़रिश्ता तू है,
हाँ अज़ल से ही मेरी रूह में रहता तू है!
बेवफ़ा सब हैं मेरे वास्ते इस दुनिया में,
बावफायी को मगर देखूं तो दिखता तू है!
ज़ख्म सहराओं कि मानिंद मेरे है लेकिन,
मेरी रग रग में यह लगता है कि बहता तू है!
हाथ फैला के तेरे आगे खुदा क्या मांगूं ,
जो भी दिल से कभी माँगा उसे देता तू है!
मेरे होंटो के तरानों में लिखी ख़ामोशी,
ऐसी ख़ामोशी जिसे गौर से सुनता तू है!
जिंदगी तेरी स्याह रातों में डर लगता था ,
बन् के आया है जो सूरज का उजाला तू है!
दर्द कि धुन में ही डूबी थी ये दुनिया मेरी ,
प्यार में डूबा हुआ कोई तराना तू है !
धूप तीखी थी न साया था कोई रस्ते में ,
प्रेम के सर पे रहा बन् के जो साया तू है
….प्रेम लता शर्मा
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .
बहुत शानदार ग़ज़ल !