गीत/नवगीत

गीत : पिता

कहीं और हम चले गये हैं लोग झूठ कहते है
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते हैं

घर की ईंट-ईंट में हम हैं
हम मिट्टी-गारे में
तुमने घर को बाँटा तो हम
टूटे बँटवारे में
उस बँटवारे की ज्वाला में अब भी हम दहते हैं
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते हैं

तुम कितना पानी लाते थे
बाहर से भर-भर कर
इसीलिए हमने लगवा दी
थी पानी की मोटर
उसकी शीतल जलधारा में अब भी हम बहते हैं
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते है

बच्चों की खुशियों से बढ़कर
मेरी खातिर क्या है
तुम सब हरदम ही खुश रहना
मेरी यही दुआ है
जब-जब तुम आपस में लड़ते तब-तब हम ढहते हैं
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते है

डाॅ.कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674

One thought on “गीत : पिता

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार गीत !

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