खोलो मन के द्वार बंद क्यों
खोलो मन के द्वार बंद क्यों?
संवादों के तार बंद क्यों?
अहंकार की खुली मुट्ठियाँ
प्रेम-पुष्प उपहार बंद क्यों?
क्या चुनाव फिर चलकर आए?
सर्पों की फुफकार बंद क्यों?
मदिरा के पट खुले बारहा
रोटी के बाज़ार बंद क्यों?
सत्य कहें जो उन मुद्दों का
करती मुख सरकार बंद क्यों?
जब भी तुमसे मिलने आएँ
मिलते दर हर बार बंद क्यों?
शूलों के पहरे में आखिर
फूलों के परिवार बंद क्यों?
फर्ज़, जन्म देना औरत का
मिले जन्म, अधिकार बंद क्यों?
दीनों हित दहलीज “कल्पना”
तेरी हे करतार! बंद क्यों?
— कल्पना रामानी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !