कविता

”सैलाब बह गया”

कल फिर किसी ने ,दुखती रगों पर
हाथ रख गया ,,,,,,
शांत सी पड़ी झील में, फिर कोई तूफान
मचलने लग गया ………
वक्त के बेहिसाब झोंकों ने ,फिर से
बेरहमी का सबूत दिया ,,,
अगर पीछे मुड़कर देखती तो ,शायद
बात ही कुछ और होती ……
पर अब सबकुछ बदल बदल गया
अब तो ये मंजर है ,,,,,
आग का दरिया है ,और सामने समंदर है
लगता है अब रूह भी ,चुरा रही हैं आँखें
बेबस खड़ी निर्निमेष अवाक,,,,
लाख कोशिशों के वावजूद सैलाब बह गया ……
दिल के किसी कोने में हलचल तो,
जरूर हुई ,,
पर अगले ही पल दर्द अपना खौफ भर गया ….

संगीता सिंह ‘भावना’

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

2 thoughts on “”सैलाब बह गया”

  • Man Mohan Kumar Arya

    सुन्दर कविता। धन्यवाद।

    • संगीता सिंह 'भावना'

      आभार सर

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