आत्मकथा

आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 57)

मैं बता चुका हूँ कि वाराणसी के आसपास घूमने की बहुत सी जगह हैं। मुख्य रूप से सारनाथ तो शहर से केवल 5-6 किमी दूर है। लेकिन थोड़ी अधिक दूरी पर मीरजापुर जिले में पर्यटकों की रुचि के कई स्थान हैं। सबसे पहले तो मीरजापुर शहर से तीन-चार किमी दूर विंध्यवासिनी का प्रसिद्ध मंदिर है, जो शक्तिपीठ माना जाता है। यह विंध्याचल पर्वतमाला के उत्तरी छोर पर स्थित है और गंगाजी के किनारे बहुत रमणीक जगह पर है। हम साल में एक-दो बार वहाँ जाते ही रहते थे, प्रायः वाराणसी घूमने आने वाले रिश्तेदारों के साथ। सबसे पहले मैं वहाँ तब गया था, जब मेरे जवाहरलाल नेहरू वि.वि. के सहपाठी श्री विजय शंकर प्रसाद श्रीवास्तव अपने पुत्र का मुंडन कराने आये थे। उन दिनों मैं घर पर अकेला ही था, क्योंकि श्रीमतीजी आगरा चली गई थीं। हालांकि मैं मूर्तिपूजा बिल्कुल नहीं करता, लेकिन घूमने और गंगास्नान के लिए ऐसे स्थानों पर चला जाता था और अभी भी जाता रहता हूँ।

इसके बाद हमें वहाँ जाने का मौका तब मिला जब हमारी शादी के तीन-चार महीने बाद मेरी बहिन गीता सपरिवार आयी थी। लेकिन शादी के बाद मुझे एक साल तक गंगास्नान की मनाही कर दी गई थी, कारण का पता नहीं। इसलिए उस बार मैं गंगा स्नान नहीं कर सका। अगली बार हम अपने सिंधी पड़ौसी के साथ गये थे। तब तक हमारे विवाह को एक वर्ष से अधिक हो चुका था, इसलिए मैंने विंध्याचल में जमकर गंगा स्नान किया। वहाँ एक मजेदार बात हुई। जब हम गंगा स्नान की तैयारी कर रहे थे, तो एक नाववाला आया और पश्चिम दिशा में इशारा करते हुए हमसे बोला- ‘बाबूजी, वहाँ थोड़ी दूर पर गंगा-जमुना-सरस्वती तीनों हैं।’

मैंने पूछा- ‘यहाँ कितनी हैं?’ उसने इस बात का कोई जबाब नहीं दिया और फिर कहने लगा कि ‘वहाँ गंगा-जमुना-सरस्वती तीनों हैं।’

मैंने फिर जोर देकर पूछा- ‘यहाँ कितनी हैं?’ नाववाला चुप। तब मैंने कहा- ‘यहाँ चार हैं। गिनो- गंगा, जमुना, सरस्वती और…’। वहाँ पास में ही एक नाला गंगाजी में गिर रहा था। मैंने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा- ‘…. एक यह गटर गंगा। हो गईं चार?’ मेरी बात सुनकर आसपास खड़े लोग हँस पड़े और बेचारा नाववाला चुपचाप चला गया।

विंध्यवासिनी के मंदिर के अलावा वाराणसी के आस-पास कई झरने भी हैं। ये झरने केवल बारिश के दिनों में या उसके तुरन्त बाद पूरे जोर से चालू हो जाते हैं और बाकी वर्ष भर उनमें नाममात्र का पानी रहता है। इसलिए अधिकतर लोग अगस्त-सितम्बर के महीनों में झरने देखने जाते हैं। सबसे पहले हमें झरना देखने का अवसर तब मिला, जब हमारे मंडलीय कार्यालय से एक बस पिकनिक के लिए देवधार नामक झरने पर गई। यह झरना काफी ऊँचाई से गिरता है, लेकिन इसका मजा केवल झरने के ऊपर से लिया जाता है। झरने की निचली सतह पर जाना कठिन ही नहीं लगभग असम्भव है। झरने के मुहाने से करीब 50 मीटर दूरी पर लोग नहाते हैं और पिकनिक मनाते हैं।

यह पिकनिक यात्रा हमारे तत्कालीन सहायक महा प्रबंधक श्री पी.एन. जेटली की पहल पर हुई थी। वे बहुत मस्तमौला आदमी थे, हालांकि काफी कड़े और अनुशासन प्रिय भी थे। इस पिकनिक में वे हाफ- पैंट पहनकर शामिल हुए थे। पहले हम झरने की नदी में खूब देर तक नहाये। फिर खाना खाकर इधर- उधर घूमे। खाना बनाने वाले लोग साथ गये थे। इस पिकनिक में पहली बार हम अधिकारियों के परिवार एक जगह मिले थे। एजीएम साहब की पत्नी से भी हमारी श्रीमती जी का परिचय हुआ। दुर्भाग्य से मेरे पास उस समय कोई कैमरा नहीं था। इसलिए मैं फोटो नहीं खींच पाया। उस समय दीपांक केवल डेढ़ वर्ष का था और वहाँ खूब दौड़-भाग रहा था। एजीएम साहब भी उसे देखकर खुश हो रहे थे।

यहाँ मुझे एक बात याद आ गयी है। श्री पी.एन. जेटली वाराणसी आने से पहले मेरठ के सहायक महा प्रबंधक थे। उनके आने से पहले ही हमारे हिन्दी अधिकारी श्री नरेन्द्र प्रसाद धस्माना का स्थानांतरण मेरठ हो गया था और उनसे मेरा पत्र-व्यवहार चलता था। उन्होंने एक पत्र में मुझे लिखा कि हमारे बारे में वहाँ के कम्प्यूटर वालों की राय अच्छी नहीं है और वे यह समझते हैं कि वाराणसी में कोई काम नहीं होता। हालांकि नरेन्द्र जी ने उनको बताया था कि आपकी धारणा बिल्कुल गलत है और वाराणसी मंडल में ही सबसे अधिक कार्य होता है। फिर भी उनकी धारणा न बदलनी थी, न बदली। जब श्री जेटली वहाँ से हमारे मंडल में आये, तो उनका विचार भी हमारे बारे में कुछ ऐसा ही था और पहली ही बैठक में उन्होंने इसको प्रकट भी कर दिया था। लेकिन दो-तीन माह में ही हमारा काम देखकर उनकी धारणा बदल गयी और बाद में वे सबसे हमारी प्रशंसा किया करते थे।

अगली बार हमें पिकनिक पर जाने का मौका दो-तीन साल बाद मिला। तब हमारे एजीएम साहब थे श्री राम आसरे सिंह। इससे पूर्व श्री राम विजय पांडेय जी लगभग 2 वर्ष हमारे एजीएम रह चुके थे। परन्तु हम कभी पिकनिक पर नहीं गये। इसका कारण यह था कि वाराणसी में रहते समय ही पहले पांडेय जी की पत्नी और फिर उनके पिताजी का देहावसान हो गया था। ऐसे शोक में पिकनिक पर जाने का प्रश्न ही नहीं था। अतः जब पाण्डेय जी कानपुर स्थानांतरित हो गये और उनकी जगह श्री राम आसरे सिंह एजीएम बनकर आये, तो पिकनिक का प्रोग्राम बना लिया गया।

इस पिकनिक की सारी व्यवस्था हमारे एक अधिकारी श्री मनमोहन कूल ने की थी। वे स्वयं बहुत भीग गये थे, क्योंकि जाते समय बहुत बारिश हो रही थी। इस बार हम गये सिरसी बाँध को देखने, जहाँ एक बहुत ऊँचा झरना भी है। वहाँ प्रायः वर्ष भर पानी रहता है और समय-समय पर बाँध से पानी छोड़ा जाता है। पहले हम बाँध को देखने गये। काफी बड़ा बाँध है, जहाँ सोनभद्र की धारा को रोका जाता है। हम दिन भर झरने के नीचे नहाये और घूमे। उस समय पानी कम गिर रहा था, इसलिए कई लोग झरने से बिल्कुल पास जाकर नहाये। फिर दाल-बाटी का भोजन किया।

लेकिन शाम को 4 बजे जब लोग झरने की फुहारों का आनन्द ले रहे थे, तो एक आदमी झरने के ऊपर से घंटी बजाकर चिल्लाया कि अब बाँध से पानी छोड़ा जाने वाला है, इसलिए सब लोग दूर हट जाओ। यह चेतावनी सुनकर सब बाहर निकल आये। फिर जब पानी छोड़ा गया तो बहुत जोर से पानी की धारा गिरी। धारा इतनी तेज थी कि कई बड़े-बड़े पत्थर तक बह गये थे। जब पानी काफी ऊँचाई से पत्थरों पर गिरकर उछलता था, तो चारों ओर बारिश की फुहारों जैसा दृश्य उत्पन्न होता था। इससे भी विलक्षण बात यह थी कि उन फुहारों से वहाँ जमीन से सटकर ही एक बहुत बड़ा और सुन्दर इन्द्र- धनुष बन गया। वह एक अद्भुत दृश्य था, जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। दुर्भाग्य से कैमरा तब भी मेरे पास नहीं था, इसलिए इसका फोटो नहीं खींच पाया।

(जारी…)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

6 thoughts on “आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 57)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , आज की किश्त बहुत रोचक लगी , घूमना फिरना मुझे भी अच्छा लगता था .वाराणसी और दुसरे अस्थानो का जो आप ने लिखा है , अगर ठीक होता तो जरुर यहाँ वाराणसी आता . हा हा , जो गटर गंगा का लिखा बहुत हंसी आई .

    • विजय कुमार सिंघल

      हा…हा….हा…. भाई साहब, यहाँ हर नदी में गटर गंगा गिरती है….

  • मनमोहन कुमार आर्य

    आज की क़िस्त के लिए धन्यवाद। वाराणसी के पिकनिक स्थानों को जानकार अच्छा लगा। मैं भी दो बार वाराणसी गया हूँ. वहां के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके पास वाले घाट देखे हैं। मानस मंदिर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का चौक, कन्या गुरुकुल] तुलसीपुर आदि स्थानो सहित नवम्बर १८६९ में महर्षि दयानंद के काशी व देश के ३० शीर्षस्थ पंडितों हुवे शास्त्रार्थ स्थल आनंद बाग़ को देखा था। आपके वर्णन से नए स्थानों का ज्ञान हुआ। वर्णन रोचक एवं प्रभावशाली है। आभार एवं धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, मान्यवर ! वाराणसी शहर के दर्शनीय स्थलों की चर्चा में पहले कर चुका हूँ. इस बार उसके आसपास के स्थलों की चर्चा की है. मैंने पहले बार झरने वाराणसी में रहते हुए ही देखे थे. उसके बाद तो बहुत झरने देख चुका हूँ. मुझे प्राकृतिक स्थलों की सुन्दरता मोह लेती है. झील, पहाड़, झरने, समुद्र, बाग़, जंगल सभी मुझे अच्छे लगते हैं, इसलिए जब भी इन्हें देखने का मौका आता है तो मैं छोड़ता नहीं हूँ.

      • Man Mohan Kumar Arya

        धन्यवाद महोदय। प्राकृतिक सौंदर्य सभी को आकर्षित करता है। शायद यही पर्यटन का आधार भी है। हमारे पूर्वज व हम भी प्राकृतिक सौंदर्य में ईश्वर के साक्षात दर्शन करते हैं। वेदो के एक प्रसिद्ध मन्त्र की याद हो आई जो है – ओं हिरण्यगर्भ समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमाम कस्मे देवाय हविषा विधेम।। जो स्वप्रकाशस्वरूप और जिसने प्रकाश करने हारे सूर्य, चन्द्रादि आदि पदार्थ उत्पन्न करके धारण किये है, जो उत्पन्न हुवे सम्पूर्ण जगत का प्रसिद्ध स्वामी एक ही चेतनस्वरूप था, जो सब जगत के उत्पन्न होने से पूर्व वर्तमान था, वह इस भूमि और सूर्यादि को धारण कर रहा है. हम लोग उस सुखस्वरूप शुद्ध प्रारमात्मा के लिए ग्रहण करने योग्य योगाभ्यास और अति प्रेम से विशेष भक्ति किया करें। इस मंत्र को प्रकृति व प्राकृतिक सौंदर्य का उत्पत्तिकर्त्ता परमेश्वर को बताकर प्राकृतिक सौंदर्य में ईश्वर की अनुभूति करना कहा गया है। यही ईश्वर का ध्यान व उपासना है। सादर धन्यवाद।

        • विजय कुमार सिंघल

          आभार, मान्यवर !

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