इक फूल खिला है ग़ालिब
बेहद बेहतरीन शायर ग़ालिब के 217 वें जन्मदिवस पर
कही जो बर्फ पड़ी है
लगता हैं ठंड बड़ी है
हवा का रुख भी है बदला हुआ
मौसम भी है महका हुआ
कलियों में होने लगी है गुफ्तगू
भला आज चमन क्यूँ है बहका हुआ
तभी एक कली ने
दूसरी से कहा इक़ फूल खिला है
*ग़ालिब* जो
हरदिल अज़ीज़ है * ग़ालिब *
तुमने ये क्या फूल खिलाया है
यारब गुलाब -ए – ग़ालिब की
सुखन में महके है जमाना यारब
इक फूल खिला है *ग़ालिब *
शत – शत नमन !
ग़ालिब को याद करना अच्छा लगा.