यथार्त व्यंग = शीर्षक =प्रियतमा
प्रियतमा ने खुश होकर कहा बंद करो तकरार
मिल कर होली खेलेंगे साल के बारहों मास
साल के बारहों मास होगी झूम -झुमाई या
सासू माँ से दूर हुई अब आरारआईया
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वाह प्रियतमा अब समझ मे आई तेरी बात
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जाऊंगी मयके मम्मी को ले आऊँ साथ
बैठ पकौड़ी खाऊंगी मै, मम्मी प्रियतम के साथ
बनी पकौड़ी चट गयी मम्मी प्यारी बेटी
जब से मम्मी से दूर हुआ भूल गयी प्यारी रोटी,,,
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राजकिशोर मिश्र [राज] की कलम से
मज़ा आ गिया ,बहुत खूब .
आदरणीय आपकी पसंद एवम् हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार
हा….हा….हा…. पत्नियों पर करारा व्यंग्य !
आदरणीय आपकी पसंद एवम् हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार