तुम्हारे हर सवाल ….
तुम्हारे हर सवाल मेरे दिल के अन्दर उलफत मचाता रहेगा।
न जाने कब तक यादों के झरोखो मे आशियाना बनाता रहेगा
तुम्हारे हर कायदा को बरकरार तब- तक संजोकर रखूँगा मैं,
जब- तक हुस्न के हर सलीके नजरों के रास्ते समाता रहेगा।
तुम्हारे लबों से निकली लफ्जों के मिठास मन में आता रहेगा।
तुम्हारे काले-काले घुघराले बाल घटा के जैसे बिखरता रहेगा।
मेरे उपर तुम्हारी आँखों का नशा इस तरह चढता चला गया,
कि रोक नही पाया अपनेआपको मैं नशीला बनता चला गया।
@रमेश कुमार सिंह
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इस कविता में लिंग भेद, वचन भेद और मात्राओं की इतनी गलतियाँ हैं कि भाव अच्छे होते हुए भी कविता का आनंद नहीं लिया जा सकता.
जी कोशिश करते हैं धन्यवाद!!