कविता
लहलहाते हरे भरे पेड़ों की छाँव
शहरों से लुप्त होते हरियाली के पाँव
चाँद सितारों से सजी लगती तो है रात
दिन के शोर में गुम हो जाती है शान्ति की हर बात
जाने और कितना सफल होगा अभी इन्सान
कि धरती पर अच्छे लगने लगे
उसे बस ऊँची इमारतें और मकान
— कामनी गुप्ता
kya baat hai
वाह !