कविता

परिवार खुशियों की दुकान

परिवार खुशियों की दुकान
है
खुशियाँ यहाँ पर बिकती है
साथ अनंत स्नेह-प्यार भी
हमें मुफ्त में ही मिलती है

परिवार वृक्ष समान है
हर सदस्य इसके शाखा
टहनी बढ़ने पर धूप नहीं
बढ़ती छाया की आशा

सामंजस्य बनाके सबके साथ
कदम मिलाके चलना है
परिवार में फूट होना भ़ईया
पतन की ओर बढ़ना है

परिवार के सहयोग से
हम चढ़ जाते हर मंजिल पर
दरिया में डूबने से पहले वे
पहुँचा देते हैं साहिल पर

इस रंग बदलती दुनिया में
परिवार ही है बस साथ
एकता है अपनों में तो
पतझड़ भी लगे बरसात

परिवार में जब मेल है
पृथ्वी पर ही स्वर्ग है
उस स्वर्ग में मैं भी रहती हूँ
इस बात का मुझे गर्व है

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

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