परिवार खुशियों की दुकान
परिवार खुशियों की दुकान
है
खुशियाँ यहाँ पर बिकती है
साथ अनंत स्नेह-प्यार भी
हमें मुफ्त में ही मिलती है
परिवार वृक्ष समान है
हर सदस्य इसके शाखा
टहनी बढ़ने पर धूप नहीं
बढ़ती छाया की आशा
सामंजस्य बनाके सबके साथ
कदम मिलाके चलना है
परिवार में फूट होना भ़ईया
पतन की ओर बढ़ना है
परिवार के सहयोग से
हम चढ़ जाते हर मंजिल पर
दरिया में डूबने से पहले वे
पहुँचा देते हैं साहिल पर
इस रंग बदलती दुनिया में
परिवार ही है बस साथ
एकता है अपनों में तो
पतझड़ भी लगे बरसात
परिवार में जब मेल है
पृथ्वी पर ही स्वर्ग है
उस स्वर्ग में मैं भी रहती हूँ
इस बात का मुझे गर्व है
– दीपिका कुमारी दीप्ति
धन्यवाद सर !
वाह वाह ! भारतीय संस्कृति का आधार ही परिवार व्यवस्था है.
हार्दिक धन्यवाद सर !
संयुक्त परिवार और आपिस में पियार , सुखी लगे संसार .